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मीति वाक्यामृतम्
हाथी को (न) नहीं (स्खलयति) रोकता है ।। 187॥ (संहतैः) एकत्रित (विषतन्तुभिः) मृणाल द्वारा (दिग्गजः) गज (अपि) भी (नियम्यते) बांधा जाता है |38॥
विशेषार्थ:- अपने से अधिक शक्तिशाली सीमाधिपति-प्रतिद्वन्दी के कुछ धनराशि की मांग करने पर यदि हीनशक्ति वाला लोभादिवश उसे धन नहीं देता तो भविष्य में उसे अपरिमित असंख्य धन राशि देने को वाध्य होना पड़ता है, तथा उसकी कठोर आज्ञा पालन करनी पड़ती है । अतः अपरिमित धन राशि के संक्षणार्थ एवं अपहरण, राष्ट्रविनाश से बचने के लिए निर्बल राजा को सबल के लिए धनादि देकर सन्तुष्ट कर वश करे ।83 || गुरु ने कहा है :
सामाधिपे बलाढ्ये तु यो न यच्छति किंचन । व्याजं कृत्वा स तस्याथ संख्याहीनं समाचरेत् ॥
शत्रु द्वारा जिसका सैन्य नष्ट कर दिया गया है या जो परदेश से आया है । वह शक्तिहीन हो जाता है । इस प्रकार का शत्रु अपने यूथ से भ्रष्ट कुंजर हाथी के समान किससे परास्त नहीं होता ? सभी के द्वारा वश किया जा सकता है । अर्थात क्षद्र लोग भी उसे पराजित कर देते हैं - 134॥ नारद ने कहा है कि:
उच्चादितोऽरिभि राजा परदेशसमागतः
वन हस्तीव व साध्यः स्यात् परिग्रहविवर्जितः ।।।। ___ जिस सरोवर का नीर पूर्णतः निकाल दिया गया है, उस जलहीन सर में निवासी मगर, घडियाल आदि जलजन्तु भयङ्कर होने पर भी जलसर्प के समान निर्विष व शक्तिहीन हो जाता है उसी प्रकार सैन्य के क्षय हो जाने पर वह राजा भी क्षीण शक्ति हो जाता है ।B5॥ रैम्य ने कहा है :
सरसः सलिले नष्टे यथा ग्राह्यस्तुलां व्रजेत् । जल सर्पस्य तद्वच्च स्थानहीनोन्पो भवेत् ॥
यदि शक्ति सम्पन्न सिंह वन प्रदेश से निकल जाये तो श्याल (गीदड़) के समान शक्तिहीन हो जाता है, उसी प्रकार सैन्य-बल के नष्ट होने पर विक्रमशाली भी राजा क्षीणशक्ति हो जाता है |36 ॥ शक्र ने भी कहा
शृगालतां समभ्येति यथा सिंहो वनच्युतः । स्थानभ्रष्टो नृपोप्येवं लघुतामेति सर्वतः 1॥
अर्थ में विशेषता नहीं है।
समूह में शक्ति निहित होती है । कहा भी है "एकता ही बल है" भिन्न-भिन्न तृणों को एकत्रित कर रस्सा बट लेने पर क्या वह हाथी के गमन को नहीं रोकता ? अवश्य रोकता है । अर्थात् उससे मदोन्मत्त गजराज भी बांधा जा सकता है । विष्णुशर्मा ने भी कहा है :
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