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नीति वाक्यामृतम्
जिस प्रकार कोई व्यक्ति तिरस्कार भाव से भी किसी बीज या पौधा आरोपण करता है तो वह वृक्षरूप धारण करता हुआ शनै: शनै: अपनी जड़ों को मजबूत फैला कर सुदृढ हो जाता है उसी प्रकार सीमाधिपति राजा भी अनिच्छा से निर्बल राजा द्वारा भूमि ग्रहण कर विशेष शक्तिशाली हो जाता है । पुनः उस भूमि को नहीं छोड़ता । 167 || रैभ्य ने भी कहा है :
लीलयापि क्षितौ वृक्षः स्थापितौ वृद्धिमाप्नुयात् ।। तस्या गुणेन नो भूपः कस्मादिह न वर्धते ॥ 1 ॥
सामदानादि नैतिक उपायों के प्रयोग में निपुण पराक्रमी व जिससे अमात्य आदि राजकर्मचारीगण एवं प्रजा अनुकूल है, इस प्रकार का नृप अल्पदेश का अधिपति होने पर भी वह चक्रवर्ती के समान है क्योंकि कहा है " आज्ञा मात्र फलं राज्यम्" जिसकी आज्ञा का पालन प्रजा करती है तो वह राजाधिराजपति है 1168 | अपनी कुल परम्परा से चली आई भूमि किसी को नहीं देना चाहिए क्योंकि एक बार हाथ से निकली वस्तु हाथ में आना दुर्लभ है । भूमि किसी राजा की नहीं होती अपितु वीर सुभट की ही होती है कहा भी है "वीर भोग्या हि वसुन्धरा" अतः राजा को पराक्रमशील और सुभट होना चाहिए 1169 ॥ शुक्र ने भी कहा है :
कातराणां न वश्या स्याद्यद्यपि स्यात् क्रमागता । परकीयापि चात्मीया विक्रमो यस्य भूपतेः ॥1 ॥
अर्थ :- वंशपरागत भूमि वीर पुरुषों के भोग्य योग्य होती है कायरों के नहीं 111 ॥ सारांश यह है कि राजाओं के प्रेम के शासन द्वारा अपनी शक्ति बढ़ाना चाहिए । न्यायपूर्वक शासन स्थायी होता है 1169 | सामादि चार उपाय, सामनीति का भेद पूर्वक लक्षण, आत्मोपसन्धान रूप सामनीति का स्वरूप, दान, भेद और दण्डनीति का स्वरूप :
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सामोपप्रदानभेददण्डा उपायाः 1170 ॥ तत्र पञ्चविधं साम, गुणसंकीर्तनं, सम्बन्धोपाख्यानम्, परोपकारदर्शमायति प्रदर्शनमात्मोपसन्धानमिति 1171 ॥ यन्ममद्रव्यं तद्भवता स्वकृत्येषु प्रयुज्यतामित्यात्मोपसन्धामम् 1172 ॥ वह्वर्थं संरक्षणायाल्पार्थप्रदानेनन पर प्रसादनमुपप्रदानम् 1173 | योग तीक्ष्णगूढपुरुषोभयवेत्तनैः परबलस्य परस्परशंकाजननं निर्भर्त्सनम् वा भेदः 1174 ॥ बधः परिक्लेशोऽर्थहरणं च दण्डः 1175 ॥
विशेषार्थ :- शत्रु नृपति या प्रतिकूल पुरुष को वश आधीन करने के चार उपाय हैं- 1. साम, 2. उपप्रदान, 3. भेद और 4. दण्ड 1 70 | सामनीति इनमें प्रथम है । इसके भी पाँच भेद हैं। 1. गुण संकीर्तन प्रतिकूल राजा या अन्य व्यक्ति के समक्ष उसके गुणों का बखान करना, प्रशंसाकर उसे प्रसखन करना । 2. सम्बन्धोपाख्यानम् जिस उपाय या युक्ति से प्रतिकूल की मित्रता होना संभव हो उस उपाय को उसके समक्ष कथन करना । 3. परोपकारदर्शन :- विरुद्ध शत्रु की भलाई प्रदर्शित करना । 4. आयति प्रदर्शनम् - "हम लोग यदि परस्पर मैत्री कर लेते हैं तो भावीकाल में सुखी बनाने का साधन होगा" इस प्रकार का अभिप्राय उस प्रतिकूल के समक्ष प्रयोजन प्रकट करना ।। 5. आत्मोपसन्धानम् मेरा कोष खजाना आप ही का है, आप व्यय खर्च कर सकते हैं । इस
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