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________________ नीति वाक्यामृतम् अर्थ :- सामनीति द्वारा जो पुरुष अपने कठिन भी कार्य को सरलता से सिद्ध कर लेता है वह चतुर है । इसके विपरीत भेदनीति द्वारा या दण्ड प्रयोग से जो व्यक्ति अपना प्रयोजन सिद्ध करता है उसे नीतिज्ञजन "मूर्ख" । कहते हैं। 1॥ यथार्थ लोकाचार या अनुष्ठान वह है जिसके द्वारा संसार उसे सम्मान प्रदान करे । अर्थात् अनुष्ठाता सर्वजनप्रिय हो जावे |1560 सजनता व धीरता की महिमा, सौभाग्य, सभा-दोष, हृदयहीन का अनुराग व्यर्थ : तत्सौजन्यं यत्र नास्ति परोद्वेगः ॥7॥ तद्धीरत्वं यत्र यौवनेनानपवादः 1158॥ तत्सौभाग्यं यत्रादानेन वशीकरणम्।।59 ।। सा सभारण्यानी यस्यां न सन्ति विद्वान्सः 1600 किं तेन आत्मनः प्रियेण यस्य न भवति स्वयं प्रियः ।।61॥ अन्वयार्थ :- (तत्) वह (सौजन्यम्) सज्जनता है (यत्र) जहाँ (परोद्वेगः) दूसरों को उद्वेगभय (नास्ति) नहीं होता ।।57 ।। (धीरत्वम्) धैर्य (तत्) वह है (यत्र) जहाँ (यौवनेन) यौवन द्वारा (अनपवादः) व्यसन न हों ।58 ।। (सौभाग्यम्) सौभाग्य (तत्) वह है (यत्र) जहाँ (अदानेन) दान न देकर भी (वशीकरणम्) वशीकरण हो 159 ॥ (सा) वह (सभा) सभा (अरण्यानि) जंगल है (यस्याम्) जिसमें (विद्वान्सः) विद्वान (न) नहीं (सन्ति) हैं ।60 ॥ (तेन) उससे (किम) क्या (यस्य) जिसके (आत्मनः) स्वजनों को (प्रियेण) प्रेम द्वारा (स्वय (प्रियः) स्नेही (न) नहीं (भवति) होता है ।1॥ विशेषार्थ :- सज्जनता उसे कहते हैं जिससे कि दूसरों के हृदय में भय या उद्वेग का संचार न हो । अर्थात् देखते ही दूसरों के हृदय में उल्लास-प्रसन्नता की लहरें उठने लगें 1157 || वादरायण ने भी कहा है: यस्य कृतेन कृत्स्नेन सानन्दः स्याजनोऽखिलः । सौजन्यं तस्य तज्ज्ञेयं विपरीतमतोऽन्यथा ॥1॥ भावार्थ वही है ।57 ॥ का जो पुरुष यौवन की तरुणाई में भी शान्तचित्त रहकर परदार रत नहीं होते, वेश्या सेवन से विमुख रहते हैं अर्थात् इन दोषों से अछूते रह स्वदार सन्तोष व्रत पालन करते हैं वे धीरतागुण धारी माने जाते हैं 1158 || शौनक ने भी कहा है: परदारादिदोषेण रहितं यस्य यौवनम् । प्रयाति वा पुमान् धीरो न धीरो युद्धकर्मणि ॥ युद्ध भूमि में धैर्य दिखाना यथार्थ नहीं, अपितु यौवनकाल में उद्धतता न आना धैर्य है ।। दान न देने पर भी जो जनसमुदाय को आकृष्ट कर ले वही भाग्यशाली है ।।59 ॥ गौतम ने कहा है दानहीनोऽपि वशगोजनो यस्य प्रजायते । सभगः स परिज्ञेयो न यो दानादिभिर्नरः ।।1॥ 506
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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