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नीति वाक्यामृतम्
2. दम्पत्तियों का पारस्परिक प्रेम-स्रेह होना चाहिए । 3. मनः प्रसाद-हृदय-कमल की प्रफुल्लता-सतत शान्त चित्त होना 4. गर्भाधान का समय चन्द्रग्रहण आदि से रहित दिन होना चाहिए । 5. लक्ष्मी-अन्तरङ्ग-अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त सुख व अनन्तवीर्य, वहिरङ्ग समवशरणादि, तथा श्रुतज्ञान सरस्वती देवी के आह्वानन रुप मंत्रों का यथा विधि उच्चारण करना, 6. आचारशास्त्र के अनुसार प्रकृति के और ऋतु के अनुकूल शुद्ध-प्रासुक भोजनआहार भक्षण करना। इस प्रकार माता-पिता के आचरणों-क्रिया कलापों से उनकी सन्तान पराक्रमी, वीर, शुद्धाचरणी, धर्मात्मा आदि गुण सम्पन्न होती है 69॥ निरोगी व दीर्घ जीवी संतान का कारण, राज्य व दीक्षा के अयोग्य पुरुष, अङ्गहीनों का राज्याधिकार की सीमा, विनय का प्रभाव, अभिमानी राजकुमारों की हानि :
गर्भशर्मजन्मकर्मापत्येषु देहलाभात्मलाभयोः कारणं परमम् ॥10॥ स्वजाति योग्य संस्कार हीनानां राज्ये प्रव्रज्यायां च नास्त्यधिकारः ।।1।। असति योग्येऽन्यस्मिन्नङ्गविहीनोऽपि पितृपदमहत्यापुप्रोत्पत्तेः ।।72॥ साधुसम्पादितो हि राजपुत्राणां विनयोऽन्वयमभ्युदयं न च दूषयति ।।73॥ धुण जग्धं काष्ठमिवाविनीतं राजपुत्रं राजकुलमभियुक्तमात्र भंज्येत् ।174॥
अन्वयार्थ :- (गर्भः) गर्भकाल (शर्म:) शान्त-निरोग माँ हो (जन्मकर्म) जन्म शुभ ग्रह में हो वह (अपत्येषु) सन्तान में (देहः) शरीर (आत्मलाभयो:) और आत्मलाभ का (कारणम्) हेतू (परमम्) उत्तम [ भवति] होता है 1701 (स्व) अपनी (जातियोग्यः) जाति के योग्य (संस्कारहीनानाम) संस्कारों से रहितों को (राज्ये) राज करने में (च) और (प्रव्रण्यायाम्) दीक्षाधारण में (अधिकारः) अधिकार (न) नहीं (अस्ति) है ।71 ॥ (असति) अभाव (योग्य) योग्य के (अन्यस्मिन्) दूसरा (अङ्गविहीनः) विकलांग (अपि) भी (पितृपदम्) पिता के पद को (अर्हति) योग्य है (आ पुत्रोत्पत्तेः) पुत्र की उत्पत्तिपर्यन्त ।।72 || (हि) निश्चय से (साधुसम्पादितः) सत्पुरुषों द्वारा सम्पादित (राजपुत्राणाम्) राजकुमारों की (विनयः) विनम्रता-सदाचार (अन्वयः) कुलपरम्परा (च) और (अभ्युदयम्) ऐश्वर्य को (न) नहीं (दूषयति) मलिन करती है ।73| (घुणजग्धम्) दीमक लगे (काष्ठम्) लकड़ी (इव) समान (अविनीतम्) विनयरहित (राजपुत्रम्) युवराज (राजकुलम्) राजवंश को (अभियुक्तमात्रम्) प्राप्ति के साथ ही (भंज्येत्) नष्ट कर देता है 174।।
भावार्थ :- जो स्त्री गर्भावस्था में निरोगी एवं सुख-शान्ति में रहती है, उसकी सन्तान भी सुखी रहती है एवं स्वस्थ होती है। जिस बच्चे का जन्म शुभ ग्रहों-योगों में होता है वह दीर्घजीवी (चिरायु) होता है 170|| गुरु विद्वान का भी यही अभिप्राय है :
गर्भस्थानमपत्यानां यदि सौख्यं प्रजायते ।
तद्भवेद्धि शुभो देहो जीवितव्यं च जन्मनि ।।1।। जिन पुरुषों का अपनी जाति के नियमानुसार मन्त्रादि संस्कार व गर्भाधानादि क्रियाएँ नहीं हुई हैं उनको राज्य प्राप्ति का अधिकार नहीं है । तथा दीक्षाधारण करने का भी अधिकार नहीं है 1171॥ नृपति के कालकवलित होने पर यदि उसका पुत्र विकलाङ्ग है तो भी वह राजशासन का अधिकारी हो सकता है । परन्तु वह तभी तक राजा माना जायेगा जब तक कि उसके पुत्रोत्पन्न नहीं होता । उस अनहीन की योग्य सन्तान होने पर वही राज्याधिकारी होगी 1172॥ शक्र विद्वान ने भी यही अभिप्राय व्यक्त किया है :
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