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नीति वाक्यामृतम्
अन्वयार्थ :- (संवदनम्) वशीकरण, उच्चाटन (च) और (स्वातंत्र्यम्) स्वच्छन्दता (अभिलषन्त्यः) चाहने वाली (स्त्रियः) स्त्रियाँ (किंनाम) क्या (न) नहीं (कुर्वन्ति) करती हैं ? 434 ॥ (हि) निश्चय ही (किल) यही (श्रूयते) सुना जाता है (आत्मनः) स्वयं की (स्वच्छन्दवृत्तिम्) उच्छृखलवृत्ति को (इच्छन्ती) चाहती हुई (मणिकुण्डला
हादेवी) महाकुण्डलारानी ने (विषविदुषित) विषमिश्रित मद्य के (गण्डषेण) करलों से (यवनेष) यवनों में (निजतनुज) अपने पुत्र के (राज्यर्थम्) राज्य के लिए (अगराजम्) अंगराज नामक (राजानम्) पति राजा को (जधान) मार डाला 185 ॥ (विष) जहर (आलक्तक) आलते से (दिग्धेन) लिप्त (अधरेण) ओठों से (वसन्तभतिः) वसन्तमती ने (शूरसेनेषु) मथरा में (सुरतविलासम्) सुरतविलास राजा को, (विषोपलिसेन) विषाक्त (मेखलामणिना) करधनी की मणियों द्वारा (वृकोदरी) वृकोदरी ने (दशार्णेषु) भेलसागांव में (मदनार्णवम्) मदनापव-राजा को, (निशितनेमिना) तीक्ष्ण नुकीले (मुकुरेण) दर्पण से (मगधेषु) मगध में (मदराक्षी) मदराक्षी ने (मन्मथविनोदम्) मन्मथविनोद को, (कबरीनिगूढेन) चोटी में छिपी (असिपक्षण) तलवार सम छरी द्वारा (चन्द्ररसा) चन्द्ररसा रानी ने (पाण्डयेषु) पाण्ड्य देश में (पुण्डरीकम्) पुण्डरीक को (इति) समाप्त किया ।।36 ॥ (श्रीजसुखोपकरणम्) लक्ष्मी से उत्पन्न सुख रूप (अमृतरस वाप्य:) अमृत रस भरी वापियों (इव) समान (स्त्रियः) स्त्रियाँ [ सन्ति] हैं ।।87 ॥ (क:) कौन (तासाम्) उन नारियों (में) के (कार्याकार्य) करणीय-अकरणीय (विलोकने) देखने में (अधिकारः) अधिकारी है ? कोई नहीं 138॥
विशेषार्थ :- जो नारियाँ वशीकरण, उच्चाटन एवं स्वच्छन्द विचरण करने में दत्तचित्त रहती हैं वे क्या क्या अनर्थ नहीं कर सकतीं? सब कुछ कर सकती हैं । इस प्रकार की स्त्रियों से सावधान रहना आवश्यक है ।। 34 भारद्वाज ने भी लिखा है :
कार्मणं स्वेच्छयाचारं सदावाञ्छन्ति योषितः ।
तस्मात्तासु न विश्वासः प्रकर्त्तव्यः कथंचन |1॥ अर्थ :- जो महिलाएँ सतत् स्वच्छन्द विचरण करती हैं, मंत्र तंत्रादि प्रयोग में उलझी रहती हैं उनका विश्वास नहीं करना चाहिए । प्रधानतः राजाओं को उनसे दूर रहना चाहिए 154 ॥
__इतिहास में ऐसे अनेक इतिवृत्त हैं जिनमें नारियों द्वारा किये गये महा अनर्थों का उल्लेख है । कुछ निदर्शन इस प्रकार हैं - यवन देश में मणिकुण्डला नाम की स्वच्छन्द महिला ने अर्थात् पट्टमहिषी-पटरानी ने अपने पुत्र को राज्य दिलाने के व्यामोह में अपने पति अगराज नामक राजा को विषदूषित पानक पिलाकर कुरले कराकर मार डाला 1135 ॥ इसी प्रकार शूरसेन (मथुरा) में वसन्तमती नाम की स्त्री ने विषमिश्रित आलते से अधर ओष्ठ रंगकर सुरतविलास नामक राजा को मृत्यु का दास बना दिया । दशार्ण (भेलसा) नगर में वृकोदरी रानी ने विषलिप्त करधनी के मणि से मदनार्णव नामक राजा को यमराज के द्वार पहुँचाया-मरण को प्राप्त कराया, मदिराक्षी ने मगध देश में तीखे दर्पण से मन्मथविनोद को मरण का वरण कराया, तथा पाण्डय देश में चण्डरसा रानी ने कबरी-केशपाश में छुपी छूरिका द्वारा अपने पति को पुण्डरीक को मृत्यु के घाट उतार डाला 186 ||
स्त्रियाँ लक्ष्मी की अवतार हैं । अर्थात् जिस प्रकार पुरुष लक्ष्मी-धन प्राप्त कर विशेष सुखानुभव करते हैं, म उसी प्रकार स्त्रियों को पाकर भी विषय सुखानुभव में विशेष आनन्द मानते हैं । एवं अमृतरस भरी वावडी सदृश
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