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नीति वाक्यामृतम्
N 4. मित्र की पत्नी के प्रति दुर्भाव भोगदृष्टि नहीं रखता हो, 5. मित्र के क्रुद्ध व प्रसन्न होने पर भी ईर्ष्या नहीं। म रखता. हो । इन गुणों से युक्त ही सच्चा मित्र होता है । नारद विद्वान ने भी ये ही गुण कहे हैं :
आपत्काले च सम्प्राप्ते कार्ये च महति स्थिते ।
कोपे प्रसादनं नेच्छेद् मित्रस्येति गुणाः स्मृताः ।।1॥ सारांश यह है कि मित्र वही है जो अपने मित्र की हर परिस्थिति में उसका सहायक बना रहे 15॥ अब दुर्गुणी मित्र को कहते हैं :
1. मित्र से धनादि प्राप्ति की अपेक्षा से स्नेह करना । 2. स्वार्थ सिद्धि में लीन रहना । 3. विपत्तिकाल में सहाय नहीं करे । 4. विश्वासघात करना अर्थात् मित्र के शत्रुओं के साथ जा मिलना । 5. छल-कपट करना, धोखे से ऊपरी नभ्रता, विनय व मददी दिखाना । 6. मित्र के गुणों का प्रकाशन करना ये मित्र के दोष हैं । ॥ रैम्य विद्वान ने भी मित्र के दोषों का रल्लेख करते हुए कहा है :
दानस्ने हो निजार्थत्वमुपेक्षा व्यसनेषु च । वैरिसंगो प्रशंसा च मित्रदोषाः प्रकीर्तिताः ।।1।
1. मित्र की स्त्री पर कुदृष्टि रखना, 2. मित्र के साथ वाद-विवाद करना, 3. सतत् धनादि की याचना करना, 4. स्वयं कभी भी धनादि नहीं देना, 5. आपस में लेन-देन व्यापार का सम्बन्ध रखना, 6. मित्र की निन्दा व चुगली करना। आदि बातों से मैत्री भंग हो जाती है । प्रीति नष्ट होती है ।17 || शुक्र ने कहा है
स्त्री संगति विवादोऽथ सदार्थित्वमदानता ।
स्वसम्बन्धस्तथा निन्दा पैशून्यं मित्रवैरिता ।। जल का सच्चा मित्र दूध है । दुग्ध सिवाय अन्य कोई उत्तम मित्र है ही नहीं । क्योंकि वह अपने सानिध्य से तत्क्षण अपने गुण स्वरूप बना लेता है । उसी प्रकार मनुष्य को ऐसे ही उत्तम पुरुष की संगति करना चाहिए जो उसे अपने समान गुणयुक्त बना सके । ॥ गौतम विद्वान का भी यही अभिप्राय है :
गुणहीनोऽपि चेत्संगं करोति गुणिभिः सह ।
गुणवान् मन्यते लोकैर्दुग्धाढ्यं कं यथा पयः ।।2। मैत्री की आदर्श परीक्षा, प्रत्युपकार की दुर्लभता व दृष्टान्त :
__न नीरात्परं महदस्ति यन्मिलितमेवसंवर्धयति रक्षति च स्वक्षयेण क्षीरम् 19॥ येन केनाप्युपकारेण तिर्यञ्चोऽपि प्रत्युपकारिणोऽव्यभिचारिणश्च न पुनः प्रायेण मनुष्याः ।।10। तथा चोपाख्यानकंअटव्यां किलान्ध
कूपे पतितेषु कपि सर्पसिंहा क्षशालिकसौवर्णिकेषु कृतोपकारः कंकायननामा कश्चित्पान्यो विशालायां पुरि । तस्मादक्ष शालिकाद् व्यापादनममवाफ्नाडीजंघश्च गोतमादिति ॥11॥