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________________ नीति वाक्यामृतम् अशिक्षित हाथी से हानी और उनके गुण : अशिक्षिता हस्तिनः केवलमर्थप्राणहराः 115 11 सुखेन यानमात्मरक्षा पर पुरावमर्दनमरिव्यूह विघातो जलेषु सेतुबन्धो वचनादन्यत्र सर्वविनोद हेतवश्चेति हस्तिगुणाः ॥16 ॥ अन्वयार्थ :- ( अशिक्षिता) शिक्षारहित (हस्तिन: ) गज (केवलम् ) मात्र ( अर्थप्राणहरा :) धन और प्राणों के नाशक [ भवन्ति] होते हैं 115 | ( सुखेन ) आराम से ( यानम् ) सवारी ( आत्मरक्षा ) स्वरक्षा - महावत रक्षा (परपुर: ) अन्य नगर का ( अवमर्दनम् ) नष्ट करना, (अरिव्यूहविघातः) शत्रु समूह का नाश ( जलेषु ) नदी आदि में (सेतुबन्ध:) पुल (वचनात् ) वचन के सिवाय (अन्यत्र ) अन्य रूप से (विनोद) मनोरञ्जक (च) और (सर्व) सम्पूर्ण (विनोद हेतवः) प्रमोद का साधन ( हस्तिगुणाः) हाथी के गुण [ भवन्ति ] होते हैं ||6|| विशेषार्थ :- समरांगण की शिक्षारहित हाथी स्वामी का केवल धन खर्च करता है और युद्धादि में महावत के प्राणों का घात करता है । उनके द्वारा शत्रुविजयलाभ रूप प्रयोजन सिद्ध नहीं होता । अतएव वे राजा - स्वामी का अन्न- घास आदि खाकर आर्थिक क्षति ही करते हैं, बिगड़ गया तो महावत के साथ अपने ही स्वामी की सेना को ध्वस्त - नष्ट कर देता है |15| नारद जी ने भी कहा है : शिक्षाहीना गजा यस्य प्रभवन्ति महीभृतः I कुर्वन्ति धननाशं ते केवलं धन संक्षयम् ॥1॥ गजों में निम्न गुण प्रमुख रूप से पाये जाते हैं : (1) कठिन मार्ग को सरलता से पार कर लेना, ( 2 ) शत्रुकृत प्रहारों से अपनी व महावत की रक्षा कर लेना, (3) शत्रु- नगर कोट व प्रवेश द्वार भग कर उसमें प्रविष्ट होकर जय करना, (4) शत्रु की सेना को कुचलकर नष्ट करना, (5) नदी में पंक्तिबद्ध खड़े होकर पुलबांधना, (6) बचनालाप के अतिरिक्त अपने स्वामी के सर्व कार्य आनन्द से करना 116 || भागुरि विद्वान ने भी यही कहा है : सुख यानं सुरक्षा च शत्रोः पुरविभेदनम् । शत्रुव्यूह विघातश्च सेतुबन्धो गजैः स्मृतः ॥1॥ अव अश्वों की सेना, उसका माहात्म्य र जात्याश्व का माहात्म्य : + अश्ववलं सैन्यस्य जंगमं प्रकार: 117 ॥ अश्वबल प्रधानस्य हि राज्ञः कदन कन्दुक क्रीडाः प्रसीदन्ति श्रियः भवन्ति दूरस्था अपि शत्रवः करस्थाः । आपत्सु सर्वमनोरथ सिद्धिस्तुरंगे एव, सरणमपसरणमवस्कन्दः परानीकभेदनं चतुरङ्गमसाध्यमेतत् ॥8॥ जात्यारूढो विजीगीषुः शत्रोर्भवतितत्तस्यगमनं नाराति ददाति 119 ॥ तर्जिका (स्व) स्थलाणा करोखरागाजिगाणा केकाणा पुष्टाहास गव्हारा सादुयारा सिन्धुपारा जात्याश्वानां नवोत्पत्ति स्थानानि ॥ 10 ॥ अन्वयार्थ :- ( अश्ववलम् ) अश्वसेना ( सैन्यस्य ) सेना का ( जंगमम् ) चलता फिरता ( प्रकार :) भेद 415
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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