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________________ नीति वाक्यामृतम् । चतुरङ्ग सेना में गज प्रमुख माने जाते हैं। क्योंकि ये अष्टायुध कहलाते हैं। ये अपने चार पैर, दो दाँत, सूंड और पूंछ इन आठों अंगों से युद्ध करते हैं । शत्रुओं का विनाशकर विजयश्री प्राप्त करते हैं । जबकि अन्य पैदल सैनिक दूसरे असि आदि आयुधों के धारण करने से आयुधधारी कहलाते हैं । 12 ॥ पालकि विद्वान ने भी कहा है : अष्टायुधो भवेद्दन्ती दन्ताभ्यां चरणैरपि J तथा च पुच्छ शुण्डाभ्यां संख्ये तेन स शस्यते ॥ 11 ॥ राजाओं की विजय के प्रधान हेतू गज ही होते हैं । क्योंकि समरांगण में हजारों शस्त्र प्रहारों से भी व्याकुल नहीं होता अपितु धीर, वीर निर्भीक सुभट की भाँति घायल होकर भी हजारों शत्रुओं को परास्त कर देता है 112 11 शुक्र विद्वान ने भी द्विपद के पराक्रम वर्णन किया है : सहस्त्रं योधयत्येको यतो याति न च व्यथाम् । प्रहारै धिग्ने स्वस्माद्धस्सिमुख जयः 17 I गज, मात्र जाति, कुल, वन और प्रचार के ही कारण प्रधान नहीं माने जाते । अपितु अन्य भी चार कारण हैं । वे निम्न प्रकार हैं : (1) उनका शरीर हृष्ट-पुष्ट एवं शक्तिशाली होता है, उनकी शक्ति न हो तो वे उनमें मन्द पशु जाति, ऐरावत आदि कुल, प्राच्य आदि वन, पर्वत, नदी आदि प्रचार पाये जाने पर भी वे युद्ध में विजयी नहीं हो सकते। (2) शौर्य, पराक्रम का होना अत्यावश्यक है । इनके बिना प्रमादी- आलसी हाथी, अपने ऊपर आरूढ़ महावत के साथ-साथ युद्धभूमि में शत्रुओं द्वारा मार दिये जाते हैं । (3) उनमें युद्धोपयोगी शिक्षा भी होना अनिवार्य है। क्योंकि शिक्षित गज ही शत्रु के दाव पेचों के अनुसार स्वयं बल प्रयोग कर विजय प्राप्त कर सकता है । अशिक्षित होने पर अपने साथ-साथ महावत को भी नष्ट करा देगा । और यदि बिगड़ गया तो अपने ही स्वामी की सेना को रौंद कर नष्ट-भ्रष्ट कर देगा | ( 4 ) हाथियों में समरोपयोगी सामग्री होना चाहिए । यथा कर्त्तव्यशीलता, आज्ञापालन, स्वामीभक्ति, विनय आदि सामग्री के साथ कठिन स्थानों में गमन करना, शत्रु सेना का उन्मूलन करना, आदि होना प्रधान है। क्योंकि इसके बिना वे विजयश्री प्राप्त नहीं करा सकते । वल्लभदेव ने भी कहा है : जातिवंशवनभ्रान्तै I र्बलैरेतैश्चतुर्विधैः युक्तोऽपि बलहीनः स यदि पुष्टो भवेन्न च ।। 1 ॥ 414
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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