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________________ नीति वाक्यामृतम् ( 2 ) धनाढ्य पुरुष, सन्तानहीन धनपति, विधवायें, धर्माध्यक्ष आदि ग्रामीण अधिकारी वर्ग, वेश्याओं का समूह और कापालिक आदि पाखण्डी लोगों के धन पर टैक्स लगाकर उसकी सम्पत्ति का अल्पांश लेकर अपने कोष की वृद्धि करे ।। (3) जो देशवासी प्रचुर सम्पत्ति सञ्चय कर रख लिए हैं उनकी सम्पत्ति का उचित विभाजन कर, उनके निर्वाह योग्य उचित धनराशि छोड़कर, अवशेष राशि को उनसे विनयपूर्वक प्रार्थना कर, समझा कर शान्ति से साथ ग्रहण करना और अपने कोष में जमाकर उसको ठोस बनाना । (4) जिनके पास अचल सम्पत्ति है ऐसे मन्त्री - आमात्य, पुरोहित और अधीनस्थ अन्य राजागण को मानसम्मान से प्रसन्न कर फुसलाकर, अनुनय-विनय कर उनके घर जाकर उनसे धन का अंश लेकर कोष की वृद्धि करनी चाहिए 1114 ॥ शुक्र विद्वान ने भी राजकीय कोष वृद्धि के ये ही उपाय कहे हैं नीतिसं टी. पृ. 206 पर देखिये ।। 44 ॥ इतिकोष समुद्देश ।। " 21 ॥ इति श्री परम् पूज्य चारित्रचक्रवर्ती मुनिकुञ्जर समाधि सम्राट् महातपस्वी, विश्व वंद्य, वीतरागी दिगम्बराचार्य श्री आदिसागर जी अंकलीकर के पट्टाधीश परम् पूज्य तीर्थभक्त शिरोमणि समाधि सम्राट् श्री महावीर कीर्ति जी महाराज की संघस्था, परम् पूज्य वात्सल्य रत्नाकर, निमित्त ज्ञानशिरोमणि श्री 108 आचार्य विमल सागर जी महाराज की शिष्या 105 प्रथमगणिनी ज्ञानचिन्तामणि आर्यिका विजयामती ने परम् पूज्य वात्सल्य रत्नाकर, सिद्धान्तचक्रवर्ती, तपस्वी सम्राट् अंकलीकर के तृतीय पट्टाधीश आचार्य 108 सन्मतिसागर जी के चरणसान्नाध्य यह हिन्दी विजयोदय की टीका का 21वां कोषसमुद्देश पूर्ण किया ! 110 11 412
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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