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नीति वाक्यामृतम्
जिस महानुभाव के पास अपार धनराशि है, वही महान व कुलीन कहा जाता है ।111 ॥ जैमिनि ने भी कहा
कुलीनोऽपि सुनीचोऽत्र यस्य नो विद्यते धनम् ।
अकुलीनोऽपि सद्वंश्यो यस्य सन्ति कपर्दिकाः ॥1॥ अर्थ :- धनवान नीच कुल का होने पर भी उच्च और उच्चकुलीन निर्धन होने से नीच कुलीन माना जाता है ।।1।। संसार विवेकशून्य अधिक होता है |
जो राजा या व्यक्ति अपने आश्रितों को सन्तुष्ट नहीं कर सकता उसकी कुलीनता व महत्ता से क्या प्रयोजन ? वे व्यर्थ ही हैं उनसे कोई लाभ नहीं होता । तात्पर्य यह कि पुरुष की महत्ता-गरिमा व कुलीनता संसार में तभी स्थापित रह सकती है जबकि वह अपने सम्पादित धन द्वारा आश्रितों-सेवकादिकों का योग्य भरण-पोषण करे । दीन-हीनों को यथायोग्य अन्न, वस्त्र और आवास की व्यवस्था या सुविधा प्रदान करे ।। अन्यथा उसका वैभव, बड़प्पन व उच्चकुलीनत्व व्यर्थ है 112 || गर्ग ने भी कहा है :
वृथा तद्धनिनां वित्तं यन्न पुष्टिं नयेत्परान् । कुलीनोऽपि हि किं तेन कृपणेन स्वभावतः ।।।।
अर्थ :- उस धनिक का धन व्यर्थ है जो परोपकार में उसे नहीं लगाता । वह यदि कुलीन भी हुआ तो क्या यदि स्वभाव से कृपण-कशंस है ।।12॥ दृष्टान्त द्वारा समर्थन व रिक्त कोष की वृद्धि का उपाय :
___ तस्य किं सरसो महत्त्वेन यत्र न जलानि 13॥ देवद्विजवणिर्जा धर्माध्वर परिजनानुपयोगि द्रव्य भागैराख्य विधवानियोगि ग्रामकूट गणिकासंघ पाखण्डिविभव प्रत्यादानैः समृद्धरिजानपदविण संविभाग प्रार्थनै रनुपक्षय श्री कामंत्रिपुरोहित सामन्त भूपालानुनयग्रहागमनाभ्यां क्षीणकोशः कोशं कुर्यात् ॥14॥
अन्वयार्थ :- (तस्य) उस (सरसः) सरोवर का (किं) क्या (महत्त्वेन) बडेपन से (यत्र) जहाँ-जिसमें (जलानि) जल (न) न हो ? व्यर्थ है ।13॥
विशेषार्थ :- सरोवर की शोभा जल से है । पिपासु अपनी प्यास बुझाने सरोवर पर आता है और वहाँ उसे बूंदभर भी जल उपलब्ध न हो तो सरोवर की विशालता से क्या प्रयोजन सिद्ध होगा? कुछ भी नहीं । उसी प्रकार धन से अर्थीजनों की तृप्ति न हो तो कितना ही प्रभूत धन रहे क्या प्रयोजन ? कुछ भी नहीं 113।।
रिक्त कोष को भरित करने के चार उपाय बताये हैं । यथा :(1) देव द्विज वणिजाम् - विद्वान, ब्राह्मण व व्यापारियों से प्राप्त धन से क्रमश: धर्माध्वर परिजनान् उपयोगि
द्रव्य भागैः - धर्मानुष्ठान, यज्ञानुष्ठान और कौटुम्बिक परिपालना के अतिरिक्त शेष द्रव्य द्वारा आयरखजाने को वृद्धिगंत करे ।