________________
नीति वाक्यामृतम्
कार्यार्थिनः पुरुषान् लञ्चलुञ्चानिशाचराणां भूतवलीन्न कुर्यात् ।।36॥ लञ्चलुच्चा हि सर्व पातकानामागमन द्वारम् 137 ॥ मातुः स्तनमपि लुञ्चन्ति लञ्चोपजीविनः ॥38॥
लञ्चेन कार्य कारिभिरूज़: स्वामी विकीयते ।।39 ।। अन्वयार्थ :- (कार्यार्थिनः) प्रयोजनार्थी (पुरुषान्) पुरुषों को, (लुञ्चलुच्चा) रिश्वत- चूंस लेने वाले (निशाचराणाम्) रात्रिचरों का (भूतवलीन्) प्राणों की बलि करने वाले (न) नहीं (कुर्यात्) बनावे, करे 186 ॥ (लञ्चलुच्चा) बलात्कार घूस लेने को (हि) निश्चय से (सर्व) सम्पूर्ण (पातकानाम्) पापों के (आगमन) आने का (द्वारम्) दरवाजा [कथ्यते] कहा है ।।37 ॥ (लञ्चोपजीविनः) घूसखोरी से जीवन चलाने वाले (मातुः) माता के (स्तनम्) स्तनों को (अपि) भी (लुञ्चन्ति) भक्षण कर जाते हैं ।। (लञ्चेन) घूस से (कार्यकारिभिः) कार्य करने वाले (ऊर्ध्व:) उन्नतशील (स्वामी) स्वामी को (विक्रीयते) बेच देता है 1891
विशेषार्थ :- राजा आगत प्रयोजनार्थी पुरुषों को, बलात्कार रिश्वत लेने वाले अमात्य आदि को एवं प्राणों की बलि देने वाले समान घूस देने वालों को न बनाये । अभिप्राय यह है कि रिश्वत लेने और देने से प्रजा को पीड़ा, अन्यायवृद्धि एवं राजकोष क्षय होता है । अतः राजा को प्रयोजनार्थी पुरुषो का घूसखोरों से रक्षण करे 136 ॥ शुक्र ने भी कहा है :
कार्यार्थिनः समायातान यश्च भपो न पश्यति ।
स चाडै गुह्यते तेषां दत्तं कोशे न जायते ॥ प्रयोजनवश आये लोगों का राजा यदि रिश्वतखोरों से रक्षण न करे तो उसके कोष की क्षति होती है In |
बलात्कार पूर्वक रिश्वत लेना सम्पूर्ण पापों का द्वार है ।।37 ॥ हिंसादि पापों का हेतू है । वशिष्ठ विद्वान ने भी कहा है :
लञ्चलुञ्चानको यस्य चाटुकर्मरतो नरः । तस्मिन् सर्वाणि पापानिसंश्रयन्तीह सर्वदा । अर्थात् चापलूस व रिश्वतखोर अधिकारियों से युक्त राजा को समस्त पापों का आश्रय बतलाया है || || 187 ॥
रिश्वतखोरी से जीविका करने वाले अन्यायी रिश्वत खोरी लोग अन्य की क्या बात अपनी माता का स्तन आतों को भी भक्षण कर जाते हैं । अपने हितैषियों से भी रिश्वत ले लेते हैं फिर दूसरे से क्यों न लेंगे ? लेते ही हैं ।B8 || भारद्वाज कहते हैं:
लञ्चोपजीविनो येऽत्र जनन्या अपि च स्तनम् । भक्षयन्ति सुनिस्तूंशा अन्य लोकस्य का कथा ।11॥
उपर्युक्त ही अर्थ है ।।
362