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मीति वाक्यामृतम्
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को उसकी पत्नी भी त्याग देती है फिर अन्य की तो बात ही क्या है ? दूसरे सेवकादि तो छोड़ ही देते हैं । गुरु विद्वान ने कहा है :
उपार्जितो यो नो दद्यात् कस्यचिद्भक्षयेत् स्वयम् ।
आत्मभरिः स विज्ञेयम्त्यज्यते भार्ययापि च ॥1॥ पेटू पुरुष को उसकी स्त्री भी छोड़ देती है अन्य की क्या बात ? ।।16।। आलस्य सभी आपत्तियों का द्वार है । अर्थात् प्रमादी को सदा सभी कष्ट घेरते हैं ।। वादरायण कहते हैं :
आलस्योपहतो यस्तु पुरुषः संप्रजायते । व्यसनानि न तं क्वापि संत्यजन्ति कथंचन ॥
आलसी-प्रमादी को कहीं पर भी "आपत्तियों नहीं त्याग सकती हैं 117| उद्योग, अन्यायी, स्वेच्छाचारी, ऐश्वर्य-फल व राजाज़ा :
__शौर्यममर्षः शीध्रकारिता सत्कर्मप्रवीणत्वमुत्साहगुणाः ।।18॥ अन्याय प्रवृत्तस्य न चिरं सम्पदो भवन्ति ॥19॥ यत्किञ्चनकारी स्वैः परैर्वाभिहन्यते ॥20॥ आज्ञाफलमैश्वर्यम् ॥21॥ राजाज़ाहि सर्वेषामलंघ्यः प्राकारः 1221
अन्वयार्थ :- (शौर्यम्) शूरता (अमर्षः) क्रुद्धता (शीघ्रकारिता) जल्दीबाजी (सत्कर्मप्रवीणत्वम्) श्रेष्ठ कार्यों में चतुराई (उत्साहगुणाः) उत्साही के गुण हैं ।।28। (अन्याय) अनीतिकर्ता (प्रवृत्तस्य) करने वाले के ( उम्पदः) सम्पत्ति (चिरम्) चिरस्थायी (न) नहीं (भवन्ति) होती हैं।119 ॥ (यत्किञ्चनकारी) स्वेच्छाचारी पुरुष (रवैः) अपने (वा) अथवा (परैः) दूसरों द्वारा (अभिहन्यते) मारा जाता है 112011 (ऐश्वर्य) वैभव का (फलम्) फल (आज्ञा) आज्ञा है ॥21॥ (हि) निश्चय से (राजाज्ञा) राजा की आज्ञा (सर्वेषाम) सभी के लिए (अलंध्य:) उलंघन नहीं करने वाला (प्राकारः) कोट है 1122 ।।
विशेषार्थ :- शूरवीरता, दूसरे अपराधियों के उपद्रवों से क्रुद्ध होने वाला, शीघ्र कार्य करने वाला, सत्कर्म करने का स्वभाव ये उत्साही पुरुष के गुण हैं ।।18॥ शौनकगुणी ने भी कहा है :
शौर्य कार्यार्थकोपश्च शीघता सर्व कर्मसु । तत्कर्मणः प्रवीणत्वमुस्साहस्य गुणाः स्मृताः 111॥
उपर्युक्त ही अर्थ है।
अन्यायी पुरुष की सम्पत्तियाँ चिरस्थायी नहीं होती है । शीघ्र नष्ट हो जाती हैं ।।29॥ अत्रि विद्वान ने भी । कहा है :
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