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नीति वाक्यामृतम् ।
अर्थ :- क्षयव्याधि ग्रस्त व्यक्ति की जिस प्रकार कोई औषधि नहीं है उसी प्रकार निन्दक की स्मृति को छोड़कर अन्य कोई औषधि नहीं है | m4| (तौर्यत्रय) गान, नृत्य, वादित्र (आसक्तिः ) में आसक्ति (प्राण, अर्थ, मानैः) प्राण, धन और सम्मान का (वियोजयति) वियोग करती है ।।
गीत सुनने में आसक्ति, नृत्य-दर्शन की लोलुपता और बाजा बजाने का लोभ ये तीनों प्राण, धन और सम्मान का नाश करने वाले हैं । अतः विवेकी को इनके व्यामोह में नहीं फंसना चाहिए In5 ||
(व्यथा) बिना प्रयोजन (आट्या) घूमने वाला (कम् अपि) किसी भी (अनर्थम्) अपाय को (अविधाय) करे बिना (न) नहीं (विरमति) विश्राम लेता है ।16।।
__ बिना प्रयोजन के इधर-उधर घूमने-फिरने वाला व्यक्ति अपूर्व अनर्थों-पापों का मूल है । अतः मनुष्य को निष्प्रयोजन यत्र-तत्र भ्रमण का त्याग करना चाहिए 116 || भृगु विद्वान ने निरर्थक घूमने वालों के विषय में लिखा
वृथाटनं नरो योऽत्र कुरुते बुद्धिवर्जितः ।
अनर्थ प्राप्नुयाद्रौद्रं यस्य चान्तो न लभ्यते ।।1॥ बुद्धिहीन जो वृथा यहाँ- यूर फिलो है उके भयंकर रुद्रकार्यो- अमर्थों का कभी अन्त नहीं आता समस्त पाप उन्हें प्रास होते हैं ।
(अतीव) अत्यन्त (ईर्ष्यालु) द्वेषी को (स्त्रियः) नारियाँ (पुरुषम्) पुरुष को (अन्ति) मार देती हैं (वा) अथवा (व्यजन्ति) त्याग देती हैं Im7 ॥
जो पुरुष महिलाओं के साथ अधिक ईर्ष्या व द्वेष रखते हैं उन्हें वे मार डालती हैं या छोड़ देती हैं ।17॥ अत: प्रत्येक व्यक्ति स्त्री के साथ प्रेम का व्यवहार करे । भृगु विद्वान का उद्धरण इस विषय में दृष्टव्य है :
ईयाधिकं त्यजन्ति स्म नन्ति वा पुरुष स्त्रियः ।
कुलोद्भूता अपि प्रायः किं पुनः कुकुलोद्भवाः ।।1m017॥ (पर परिग्रहा) पर स्त्री (अभिगमः) गमन (वा) अथवा (कन्यादूषणम्) कन्या सेवन (साहसम्) साहस है ।18 ॥ (यत्) जो (साहस) साहस (दशमुखस्य) रावण का एवं (दण्डिका) दण्डिक के (विनाश) नाश का (हेतुः) कारण (सुप्रसिद्धम् एव) अच्छी तरह प्रसिद्ध ही है । ।
परस्त्री का एवं कन्या का सेवन करना साहस है । कैसा साहस है ? विनाश और दुर्गति का प्रबल कारण। इतिहास व आगम प्रसिद्ध लंकाधिपति और दण्डिक दोनों ही यश और जीवन के साथ नष्ट हो दुर्गति के पात्र हुए 1।18-19 ।। भारद्वाज ने पर कलत्र सेवन, व कन्या-दूषण को दुःख देने वाला ही निरुपित किया है।
अन्यभार्यापहारो यस्तथा कन्या प्रदूषणम् । तत् साहसम् परिज्ञेयं लोकद्वयभयप्रदम्।।1॥
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