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नीति वाक्यामृतम् ।
अर्थ :- प्रमादरहित होना, सन्तोष और सत्यवादिता, तर्क-वितर्कता ये गुप्तचरों के गुण हैं 1 इन गुणों से त युक्त गुप्तचर अवश्य राजकीय कार्य सिद्ध करने वाले होते हैं ।।1 ||
"तुष्टिदानमेव चाराणां वेतनम् ।।३॥" अन्वयार्थ :- (तुष्टिदानम्) सन्तुष्ट राजा द्वारा दिया पारितोषिक (चाराणाम्) गुप्तचरों का (वेतनम्) वेतन है-नौकरी है ।।
विशेषार्थ :- कार्य सिद्धि होने पर राज तृप्त-सन्तुष्ट होकर जो गुप्तचरों को पारितोषिक रूप में धनराशि या द्रव्य प्रदान करता है वही उनकी तनख्वाह-वेतन है । क्योंकि -
तेहि तल्लोभात् स्वामिकार्येषु त्वरन्ते ।। अन्वयार्थ :- क्यों कि (ते) वे-गुप्तचर (हि) निश्चय से (तल्लोभात्) इनाम के लोभ से (स्वामिकार्येषु) अपने स्वामी के कार्यों में (त्वरन्ते) शीघ्रता करते हैं ।।4।।
विशेष :- पारितोषित पाने की चाह-लोभ से वे अपने राजा के कार्यों को विशेष उत्साह और सावधानी से शीघ्र ही सम्पादन करने का प्रयत्न करते हैं ।। गौतम ने कहा है :
स्वामिटि प्रदान के प्राप्नुवन्ति समुत्सुकाः ॥
ते तत्कार्याणि सर्वाणि चराः सिद्धिं नयन्ति च ॥ अर्थ :- जो गुप्तचर अपने कार्य की सफलता से राजा को सन्तुष्ट करते हैं और प्रसन्न राजा से सुन्दर उपहारधनादि प्राप्त करते हैं । राजा से हमें विशेष पारितोषिक प्राप्त होगा इस आशा से वे अतिशीघ्र और विशेष लगन से स्वामी के कार्यों का सम्पादन करते हैं ।1 || |4|| कुन्दकुन्द स्वामी ने कहा है :
रिपूणां राजभृत्यानां बान्धवानाञ्च भूपतिः । गतिं मतिं च विज्ञातुं नियुञ्जीत 'चरं' सदा ॥4॥
कुरल.प.छे.59.59. अर्थ :- शत्रु राजाओं और नोकर चाकर एवं बन्धु-बान्धवों की क्रिया, प्रकृति मति, बुद्धि, भावों को ज्ञात करने के लिए राजा गुप्तचर नियुक्त करे 14॥ गुप्तचर के वचनों पर विश्वास, गुप्तचर बिना हानि व दृष्टान्त :असति संकेते त्रयाणामेकवाक्ये सम्प्रत्ययः ।।5।। "युगपत" यह पद भी स्थान में है ।
अनवसों हि राजा स्वः परश्चातिसन्धीयते ।। ॥
कि मस्त्ययामिकस्य निशि कुशलम् ॥7॥ अन्वयार्थ :- (असति) नहीं होने पर (संकेते) संकेत के (त्रयाणाम्) तीन गुप्तचरों की (एक वाक्ये) एक । समान बात होने पर (सम्प्रत्ययः) विश्वास करना. 1151
विशेषार्थ :- यदि राजा को किसी गुप्तचर के सन्देश में शंका हो जावे तो, तीन गुप्तचरों से पृथक्-पृथक् ।
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