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नीति वाक्यामृतम्
Nही वहाँ से बिना आज्ञा वापिस आये ।। सारांश यह है कि दूत शत्रु की आज्ञानुसार प्रवेश व प्रस्थान करेगा तो उसे । अपने अपाय-घात आदि का भय नहीं रहेगा 115 | गुरु ने भी कहा है :
शत्रुणा योऽपरिज्ञातो दतस्तस्थानमाविशेत् ।
निर्गच्छेद्वाततः स्थानात् स दूतो वधमाप्नुयात् ॥1॥ अर्थ :- जो दूत शत्रु की आज्ञा बिना ही उसके स्थान में प्रवेश या प्रस्थान करता है, वह वध को प्रास करता है |
यदि दूत को यह अवगत हो जावे कि यह शत्रु मेरे स्वामी के साथ सन्धि न करके युद्ध ही करना चाहता है, और मुझे इसी कारण विलम्ब करा रहा है, उस समय उसे शत्रु की आज्ञा बिना ही शीघ्र वहाँ से चला जाना चाहिए । अथवा अपने स्वामी के पास गुप्त दूत भेजकर उसे सूचना भेज देना चाहिए । इस विषय में हारीत विद्वान ने लिखा है :
असन्धानं परं शत्रु दूतो ज्ञात्वा विचक्षणः ।
अनुक्तोऽपि गृहं गच्छेद् गुप्तान् वा प्रेषयेच्चरान् ।। अर्थ :- चतुर दूत का कर्तव्य है कि शत्रु को अपने स्वामी से युद्ध करने का इच्छुक ज्ञात कर उसकी आज्ञा के बिना ही शीघ्र ही अपने स्वामी के स्थान पर गुप्त दूत भेज दे ।। ॥ 16 ॥ यदि शत्रु ने दूत को देखते ही वापिस भेज दिया हो तो इस विषय में दूत को स्थिरचित्त से विचार करना चाहिए । कारण खोजने से उसकी निर्वृत्ति का उपाय शीघ्र बन जाता है । गर्ग विद्वान ने भी कहा है :
शत्रुता प्रेषितो दूतो यच्छीचं प्रविचिन्तयेत् । कारणं चैव विज्ञाय कुर्यात् स्वामिहितं ततः ॥1॥
अर्थ :- शत्रु द्वारा शीघ्र विसर्जित-भेजे गये दूत को इस जल्दबाजी का "कारण क्या है ?" इसका पता अतिशीघ्र लगाना चाहिए । यथा-योग्य पात्र बिना दान किस प्रकार लगा रहता है इसका ज्ञान शीघ्र लगा लेना चाहिए 11॥ दूत का स्वामी-हितोपदेश-हितोपयोगी कर्तव्य :
कृत्योपग्रहोऽकृत्योत्थापनं सुतदावादावरुद्धोपजाप: स्वमण्डल प्रविष्ट गूढ़पुरुष परिज्ञानमन्त पालाट विककोशदेश, तन्त्र भित्रावबोधः कन्यारत्नं विहाय वाहरं सुतद्वारा रल वाहनविनि श्रावणं स्वाभीष्ट पुरुष प्रयोगात् प्रकृति क्षोभकरणं दूत कर्म ॥8॥
अन्वयार्थ :- (कृत्य) करके (उपग्रहः) उपकार कर (उत्थापनम्) उत्थान (अकृत्य) नहीं करके (सुत दायादौ) शत्रुपुत्र व हिस्सेदारों में (अवरुद्ध) विरोधी (उपजापः) द्रव्यदानादि से भेद (स्व मण्डल प्रवेश विष्टः) अपने समूह में (गूढपुरुष परिज्ञानम्) गुप्त पुरुषों का ज्ञान (अन्तपालाट) सीमाधिप (विवकोशदेश) भिल्लादि कोश, देश (तन्त्रः) सेना (मित्र:) मित्र (विवोध:) परिज्ञान (कन्यारलवाहन) कन्यारत्न, हाथी घोड़ादि वाहन (विनिश्रावणम्),
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