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________________ नीति वाक्यामृतम् उनमें राजभक्ति, युद्ध के प्रति उत्साह, संगठन आदि सेनापति के आश्रित रहता है। अतः सेनापति को सर्वगुण सम्पन्न होना चाहिए ॥ 3 ॥ इति सेनापति समुद्देशः 1112 1 इति श्री परम पूज्य प्रातः स्मरणीय विश्ववंद्य, चारित्रचक्रवर्ती मुनि कुञ्जर समाधि सम्राट् महातपस्वी, वीतरागी, दिगम्बर 20वीं शदी के प्रथमाचार्य दिगम्बर गुरुवर्य श्री 108 आदिसागर जी महाराज जी अंकलीकर के पट्टाधीश, तीर्थभक्त शिरोमणि, समाधिसम्राट भगवन्त आचार्यमेष्ठी श्री 108 आचार्य महावीर कीर्ति जी महाराज संघस्था एवं कलिकाल सर्वज्ञ, वात्सल्यरत्नाकर, सन्मार्ग दिवाकर आचार्य श्री विमलसागर जी महाराज की शिष्या 105 प्रथम गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानचिन्तामणि, सिद्धान्त विशारदा विजयामती माता जी द्वारा यह विजयोदय हिन्दी भाषा टीका में 12वां सेनापति समुद्देश परम पूज्य, तपस्वी सम्राट्, सिद्धान्त चक्रवर्ती परम्पराचार्य परमेष्ठी श्री सन्मतिसागर जी महाराज के चरणसानिध्य में समाप्त हुआ || 110 11 314
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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