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________________ नीति वाक्यामृतम् मंत्री पुरोहितों को राजा कभी निराश व दुःखी न करे । अपितु उनका माता-पिता के समान सम्मान करे व सन्तुष्ट रखें । गुरु विद्वान ने कहा है : समो मातृपितृभ्यां च राज्ञो मंत्री पुरोहितौ । अतस्तौ वाञ्छि तैरथै नं कथंचिद्विस्तर येत् ।। अर्थ :- मंत्री, पिरोहित राजा के माता-पिता सदृश होते हैं । अतः वह उन्हें किसी इच्छित कार्यों में उन्हें निराश न करें । आपत्तियों का स्वरूप व भेद तथा राजपुत्र की शिक्षा का क्रमशः : अमानुष्योऽग्निरवर्षमतिवर्ष मरकी दुभिक्षं सस्योपघातो जन्तूत्सर्गो व्याधि-भूत पिशाच-शाकिनी-सर्प-व्यालमूषक-क्षोभश्चेत्यापदः ।।। शिक्षालापक्रियाक्षमो राजपुत्रः सर्वासु लिपिसु प्रसंख्याने पदप्रमाण प्रयोग कर्मणि नीत्यागमेषु रत्न परीक्षायां सम्भोग-प्रहरणोपवाह्यविद्यासु च साधुविनेतव्यः ।।4।। अन्वयार्थ :- (अमानुष्यः) उल्का, विजली पात (अग्निः) आग (अवर्षः) अनावृष्टि (अतिवर्षः) अतिवृष्टि (मरकी) महामारी रोग (दुभिक्षम्) दुष्काल (सस्योपघात:) टिड्डी दल (जन्तूत्सर्ग:) हिंसक जीवों से घात (व्याधि) शरीर पौड़ा (भूत-पिशाच-डाकिनी) व्यन्तर बाधा (सर्प-व्याल-मूषक) अहि, भुजंग, चूहा (च) और (क्षोभः) कष्ट (इति) ये (आपदाः) आपत्तियाँ [सन्ति] हैं 13 ॥ (शिक्षालाप क्रिया) वक्तत्व कला (क्षमः) समर्थ (सर्वासु) समस्त (लिपिसु) लिपियों में (प्रसंख्याने) गणित, (पदप्रमाण प्रयोग कर्मणि) व्याकरणादि कार्यों में (नीति) न्याय (आगमेषु) आगम (रत्नपरीक्षायाम्) रत्नों की जांच में (सम्भोग) कामशास्त्र, (प्रहरणोपवाह्य विद्यासु) शस्त्रविद्या हस्ती-अश्वादि वाहन विद्या में (च) और कार्यों में (राजपुत्रः) राजकुमार (साधु) सम्यक प्रकार (विनेतव्यः) शिक्षित होना चाहिए । विशेष :- राज पुत्र को भाषण कला में प्रवीण करना चाहिए । सार्वजनिक सभाओं में बोलने की कला आना चाहिए। पुनः समस्त भाषाओं, लिपियों, संख्याओं, व्याकरण, गणित, न्याय, नीतिशास्त्र, रत्नपरीक्षा, कामशास्त्र, शस्त्रविद्याहस्ती, अश्व संचालन क्रिया आदि विद्याओं में निपुण होना चाहिए ।।3-4॥ राजपुत्र विद्वान ने भी कहा कुमारो यस्य मूखों स्यान्न विद्यासु विचक्षणः । तस्य राज्यं विनश्येत्सदप्राप्त्या नात्र संशयः ॥1॥ अर्थ :- जिसका राजकुमार विद्याओं में निपुण नहीं होता मूर्ख होता है, उसका राज्य निश्चय से विनाश को प्राप्त होता है । निसन्देह नष्ट हो जाता है ।1 ॥ गुरु सेवा के साधन, विनय का लक्षण, व उसका फल क्रमशः: अस्वतन्त्र्यमुक्तकारित्वं नियमो विनीतता च गुरु पासन कारणानि ॥७॥ 299
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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