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नीति वाक्यामृतम्
अन्वयार्थ :- (स्वामिदोष:) राजा के दोष च (स्वदोषाभ्याम्) अपने ही अपराधों द्वारा (उपहतः) नष्ट (वृत्तयः) जीविका वाले पुरुष (कृत्याः ) कृत्या के (इव) समान (क्रुद्ध) कुपित (लुब्ध) लालची (भीता) भयवान (अवमानिता:) अपमानित [ज्ञातव्यः] जानना चाहिए ।।
विशेषार्थ :- मन्त्री, अमात्य, सेवक आदि राजदोष से (ईर्ष्या-द्वेषादि से ) व स्वयं किये अपराधों के कारण जिनकी जीविका नष्ट कर दी गई है वे कृत्या देवी (जिसे जारण-मारणादि प्रयोगों को अयथाविधि सिद्ध करने पर वह क्रुद्ध हो साधक को ही समाप्त कर देती है) समान कुपित, क्षुब्ध, अपमानित, हुए नप को ही समाप्त करने में उद्यत हो जाते हैं । अतः राजा को इस प्रकार के लोगों से सावधान रहना चाहिए ।। उन्हें निम्न प्रकार वश करे - नारद कहते हैं :
नोपेक्षनीयाः सचिवाः साधिकाराः कृताश्च ये । योजनीय स्वकृत्ये ते न चेत् स्युर्वधकारिणः ।।1 ॥
अर्थ :- राजा को पूर्व में अधिकारी पदासीन मंत्री, अमात्य सेवकों आदि राज कर्मचारियों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए । उन्हें स्व वश में करना चाहिए । यदि वे राजघातक न हों तो पुनः उन्हें उनके पदों पर नियुक्त कर लेन चाहिए ।।164॥ क्षुब्धों का वशीकरण व राजा का कर्तव्य :
अनुविभा सकृतिश्या कृत्यानां वशोपायाः 1165।।
क्षयलोभविराग कारणानि प्रकृतीनां न कुर्यात् ।।166॥ अर्थ :- (कृत्यानाम्) दुष्कर्मों का (वशोपायाः) वश करने के उपाय (अनुवृत्तिः) पुनपद प्रदान, (अभयम्) अभयदान (त्यागः) दान देना (च) और (सत्कृतिः) सम्यक व्यवहार 165॥ (प्रकृतीनाम्) स्वभाव सम्बन्धी (क्षयलोभ-विराग-कारणानि) नाश, लालच, विरक्ति के कारणों को (न) नहीं (कुर्यात्) करे ।।
विशेषार्थ:- सेवक, अमात्यादि राजकर्मचारी यदि पदच्युत या रुष्ट हो गये हैं तो वे 'कृत्या' समान राज्य व राजा के घातक हो जाते हैं उन्हें वश करने को उनके अनुकूल प्रवृत्ति, उन्हें अभयदान, आजीविका दान, सत्क्रियाओं द्वारा वश करना चाहिए ।
राजा का कर्तव्य है कि अपने राज्य के अंग मन्त्री और सेनापति आदि राज्यांगों को नष्ट न हों उस प्रकार किया करे । जिन कारणों से ये कर्तव्य च्युत न हो वैसा उपाय करना चाहिए । एवं लोभ का परित्याग कर उदारता से काम लेना चाहिए ।। वशिष्ठ ने कहा है :
क्षयोलोभोविरागश्च प्रकृतीनां न शस्यते । कु तस्तासां प्रदोषेण राज्यवृद्धिः प्रजायते ।।1।।
तृतीयश्चरण संशोधित है। अर्थः- राजा को प्रकृति-अमात्यादि के नष्ट और विरक्त होने के साधनों का संग्रह तथा लोभ करना उचित ।
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