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नीति वाक्यामृतम्
N लें, और चाहे कुछ भी हो भेद को खोले नहीं गुप्त रखे । परन्तु दुर्जन के प्रति विश्वस्त भी नहीं रहना चाहिए । वल्लभदेव विद्वान का अभिमत है कि :
आकार रिंगितैर्गत्या चेष्ट या भाषणेन च ।
नेत्र वका विकारेण गृह्यतेऽन्तर्गतं मनः ।।2।। अर्थ :- मुखाकृति, अभिप्राय, गायन, चेष्टा, आयण और क्षेत्र, मुख को सिका-संचालनों द्वारा मानसिक भावों को ग्रहण कर लिया जाता है ।1 ॥ अतएव गुप्त मन्त्रणा गुप्त स्थानों में, एकान्त में ही करना चाहिए 127 ॥ गुप्त विचार को सुरक्षित रखने की अवधि :
आकार्यसिद्धे रक्षितव्यो मंत्रः ।।28।। अन्वयार्थ :- (आकार्यसिद्धे) कार्य की सिद्धि होने पर्यन्त (मंत्र:) मन्त्र (रक्षितव्यः) सुरक्षित-गोपनीय रखना चाहिए।
विशेषार्थ :- जब तक संकल्पित या प्रारम्भिक कार्य की पूर्णता न हो जाये, तब उसके कार्य-कलापों की योजना गुप्त रखनी चाहिए । विवेकी जन को अपना मन्त्र गोप्य रखना चाहिए । प्रकट होने पर कार्य नहीं होगी | विदुर विद्वान ने कहा है :
एकं विषरसो हन्ति शस्त्रेणैकश्च वध्यते ।
स राष्ट्र समजं हन्ति राजानं धर्मविप्लवः ।। अर्थ :- विषभक्षण केवल खाने वाले व्यक्ति को और खड्गादि भी मात्र एक ही आदमी को मारते हैं, परन्तु धर्म का नाश या मन्त्र का भेद समस्त देश और सारी प्रजा को विध्वंश कर देता है । राजा-राज्य सबका संहार कर देता है मंत्रभेद। इसलिए मन्त्र को गोप्य ही रखना चाहिए ।28 || अपरिक्षित स्थान में मंत्रणा करने का फल :
दिवानक्तं वाऽपरीक्ष्य मंत्रयमाणस्याभिमतः प्रच्छन्नो वा भिनन्नि मन्त्रम् ।।29 ।।
अन्वयार्थ :- (दिवा) दिन में (वा) अथवा (नक्तं) रात्रि में (अपरीक्ष्य) बिना परीक्षा किये स्थान में (मंत्रयमाणस्य) मन्त्रणा करने वाले का (अभिमतः) अभिप्राय (वा) अथवा (पच्छन्नः) गुप्त कार्य रूप (मन्त्रम्) मन्त्रणा (भिनत्ति) नष्ट हो जाता है ।
बिना परीक्षा किये स्थान में मन्त्रणा करने वाले राजा का मंत्र गोपनीय नहीं रह सकेगा, वह प्रकाशित हो जायेगा। क्योंकि छिपा हुआ आत्मीय पुरुष उसे प्रकट कर देता है ।।29 ॥ उक्त कथन को ऐतिहासिक दृष्टान्त :
श्रूयते किल रजन्यां वटवृक्ष प्रच्छन्नो वर रुचिर-प्र-शि-खेति पिशाचेभ्यो वृत्तान्तमुपश्रुत्य चतुरक्षरायः 1 पादैः श्लोकमेकं चकारेति 10
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