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नीति वाक्यामृतम्
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(शत्रुराजा) के साथ मित्रता करादे, जिससे वह शत्रुराजा की सुभटता या कायरता का यथार्थ ज्ञान कर अपने राजा को विदित कर देगा। यदि वह बलवान वीर योद्धा है तो मन्त्री अपने राजा के साथ सन्धि कर दे और यदि कायर डरपोक निकले तो युद्धकर पराजित कर अपने राज्य को समृद्ध बनावे । ।
सारांश यह है कि मन्त्री को चतुर गुप्तचरों द्वारा शत्रुभूत राजाओं के विषय में यथायोग्य जानकारी कर अपने स्वामी के राज्य शासन की हर प्रकार से श्रीवृद्धि करना चाहिए । इस प्रकार का चतुर योग्य, गुणज्ञ मन्त्री अप्राप्त राज्य की प्राप्ति, प्राप्त राज्य की वृद्धि और अयोग्य आचरणों का परिहार एवं सदाचार का प्रचार कर राज्य में धर्म, अर्थ, काम पुरुषार्थों का सामंजस्य स्थापित करा सकता है । शक्र विद्वान ने भी कहा है :
शालारैः धितोरिगम्यः धर्मार्थहीनो विषयी सुभीरुः ।
पुरोहितार्थाधिपतेः सकाशात् स्त्रीरक्षकात् सैन्यपतेः स कार्यः ।।1॥ अर्थ :- राजमन्त्री को अपने-अपने विषयों में प्रवीण 'खुफिया--गुप्तचरों को नियुक्त कर शत्रु राजाओं की स्थिति का पता लगाना चाहिए । अर्थात् पुरोहित से मित्रता कर उसके धर्माचरण का, कोषाध्यक्ष से मिलकर उसकी अमीरी-गरीबी का, कञ्चुकी के साथ मिलकर लम्पटपने का एवं सेनापति से वीरता या कायरता का ज्ञानकर अपने स्वामी राजा के साथ परामर्श करके उनके साथ सन्धि-विग्रह की यथायोग्य व्यवस्था करवाना चाहिए॥1॥-14 ॥ और भी कहा है:
साधूदोगेषु सुप्रीतिः माधनानां विनिश्चयः । सम्मतिः स्पष्ट रूपा च मन्त्रदातुरिमे गुणाः ॥4॥
कु. का. पृ.64 प. २.64
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साधन चुनने में कुशल, उधम अपार । सम्मति दे सुस्पष्ट जो मन्त्रि गुणमणि सार ।4।।
अर्थ :- श्रेष्ठतम उद्यम और उनके साधनों के चुनने की कुशलता वाला, सम्मति देने के समय निश्वयदृढ स्पष्ट परामर्श-विचार प्रकट करने वाला योग्य मन्त्री समझा जाता है । नीच कुल वाले मन्त्रियों के दोष :
अकुलीनेषु नास्त्यपवादाद्भयम् ।।15॥ अन्वयार्थ :- (अकुलीनेषु) नीच कुल वाले होने पर उसे (अपवादात्) लोकापवाद से (भयम्) भीति (नास्ति) नहीं होती है ।
नीच कल का व्यक्ति मन्त्री पदारोही होगा तो उसे लोकनिन्दा का भय नहीं होगा ।
विशेषार्थ :- तुच्छकुल का पुरुष मन्त्री पदासीन होगा तो वह प्रजा के साथ दुराचारादि का व्यवहार कर सकता है क्योंकि उसे लोकापवाद का भय नहीं होता । लज्जादि गुण उसमें टिकते नहीं । अतः राजमंत्री को उच्चकुलीन नही होना चाहिए ।
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