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________________ दण्डनीति का महात्म्य : नीति वाक्यामृतम् 9 दण्डनीति - समुद्देश: चिकित्सागम इव दोषविशुद्धिर्हेतुर्दण्डः ।।1 ॥ अन्वयार्थ :- (चिकित्सा) औषध ( आगम) शास्त्र (इन) समान ( दोष विशुद्धि हेतुः ) दोषों की निर्वृत्ति का कारण ( दण्डः) दण्ड है । जिस प्रकार रोग निवारणार्थ औषधि विज्ञान आवश्यक है, उसी प्रकार दोष रूपी रोग के निवारणार्थ दण्ड व्यवस्था अनिवार्य है । विशेषार्थ :- जिस प्रकार आयुर्वेद विज्ञान शास्त्र के आधार पर दी गई औषधि समस्त वातज्, पित्तज, कफज रोगों विकारों को दूर कर देती है उसी प्रकार अपराधियों को दण्ड देकर राजा अन्यायियों के अन्याय रूप दोषों को निकाल देता है । योग्य काल और रोग के अनुकूल औषधि देने से कास, स्वास, गलगण्ड, कंठ माला, टी.बी., पीलिया, अलसर, कैसरादि अनेक रोगों से रोगी मुक्त होता है । स्वस्थ हो जाता है । उसी प्रकार देश में उपद्रव करने वाला "मात्स्य न्याय" "बड़ी मछली छोटी मछलियोंको नीगल जायें" को अर्थात् बलवानों द्वारा छोटों-कमजोरों को सताया जाना अन्याय को ब्रेक रोकथाम करने का साधन नृपतियों द्वारा दिया गया दण्ड ही कार्यकारी होता है। समस्त राजतन्त्र की आधार शिला राजदण्ड ही है । इसके अभाव में राजकण्टकों (शत्रुओं ) प्रज्ञा घातकों, निर्बलों के अन्याय करने कभी शान्त नहीं होंगे, अन्याय, अनीति नहीं त्यागेंगे । प्रजा को सताते रहेंगे, पीड़ित करेंगे जिससे असंतोष, अराजकता फैल कर राज्य में अशान्ति होगी । अकर्तव्य में प्रवृत्ति और कर्तव्य से च्युति होगी । फिर अप्राप्त राज्य की प्राप्ति, प्राप्त की रक्षा, विशाल साम्राज्य स्थापन, प्रजा रक्षण, राज्य में अमनचैन किस प्रकार रह सकता है ? नहीं टिकेगा । अस्तु न्यायपूर्वक यथोचित दण्ड व्यवस्था अति अनिवार्य है । चाणक्य ने भी उक्त नीति स्वीकारी है । देखिये कौटिल्य शास्त्र दण्डनीति प्रकरण पृ.12-13 अ. 4 सूत्र 6 से 14. गर्ग विद्वान ने भी लिखा है : अपराधिषु यो दण्डः स राष्ट्रस्य विशुद्धये । बिना येन न सन्देहो मात्स्यो न्यायः प्रवर्तते ॥॥1 ॥ अर्थ :- अपराधियों को दण्ड देने से राष्ट्र विरुद्ध अन्याय के प्रचार से रहित हो जाता है । परन्तु दण्ड 214
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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