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नीति बाक्यामृतम्
मंत्री आदि को (उत्सव:) आनन्द [ एवं ] ( कोशक्षय:) खजाने का नाश ( महान्) अधिक [ भवति ] होता है !
जो राजा फसल काल में धान्यादि का पर्याप्त संग्रह नहीं करता उसे सैनिक रसद को कष्ट उठाना पड़ता है, खजाना - कोष रिक्त हो जाता है और मंत्री आदि कार्य कर्त्ता अन्यायी हो जाते हैं ।
विशेषार्थ :- समयानुसार धान्योत्पादन होने पर यदि नृपति अपनी खत्ति कोठारों को परिपूर्ण नहीं करता है। तो सेना को पर्याप्त भोजन रसद नहीं दे सकता । अतः सैन्यबल क्षीण हो जाता है । मन्त्री व व्यवस्था देखने वाले आनन्दित होते हैं क्योंकि अनाज आदि मनमानी मंहगाई से बिक्री करते हैं । न्याय-अन्याय की चिन्ता नहीं करते । इससे राज - कोष भी क्षीण हो जाता है । क्योंकि मन्त्री आदि गोल माल कर आवश्यकता से अधिक लूट-पाट कर लेते हैं । विद्वान नारद ने लिखा है :
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ग्रीष्मे शरदि यो नान्नं संगृह्णाति महीपतिः । नित्यं मूल्येन गृह्णाति तस्य कोषक्षयो भवेत् ॥1 ॥
अर्थ :- जो नृपति ग्रीष्म ऋतु व शरद ऋतु में फसल आने पर पर्याप्त अन्न का संग्रह नहीं करता है, उसे नित्य मूल्य देकर अन्न-धान्य क्रय करना पड़ता है । फलतः उसका कोष-खजाना नष्ट हो जाता है । राजा की शक्तियों में कोष शक्ति अनिवार्य और प्रमुख हैं ।
नीतिज्ञ भूपति का कर्त्तव्य है कि अपनी विशाल सेना को पुष्ट और आज्ञाकारी बनाये रखने के लिए उसके भरण-पोषण - रसद का साधन बनाये रखे । सैन्य बल से राज्य बल रक्षित रहता है ॥14 ॥
आय के बिना व्यय करने वाले मनुष्य की हानि :
नित्यं हिरण्यव्ययेन मेरुरपि क्षीयते ॥15॥
अन्वयार्थ :- (नित्यम्) प्रतिदिन ( हिरण्य) सुवर्ण (व्ययेन) खर्च करने से (मेरु:) सुमेरु (अपि) भी ( क्षीयते) नष्ट हो जाता है ।
आय के अभाव में खर्च करने से संचित पूंजी समाप्त हो जाती है ।
विशेषार्थ :- जो व्यक्ति व राजा सतत् संचित धन राशि का व्यय करता रहता
और नवीन धन सञ्चय
का लक्ष्य ही नहीं रखता उसका विशाल अटूट खजाना भी एक दिन रिक्त हो जाता है । और तो क्या सुमेरु पर्वत के बराबर भी धन का ढेर हो वह भी समाप्त हो जाय तो सामान्य कोष की क्या बात ? वह तो अल्प काल में रिक्त होगा ही । शुक्र विद्वान ने भी कहा है :
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आगमे यस्य चत्वारि निर्गमे सार्धपञ्चमः स दरिद्रोत्वमाप्नोति वित्तेशोऽपि स्वयं यदि ॥11 ॥
अर्थ • जिस मानव की आय - कमाई चार रुपये मुद्राएँ हों और व्यय खर्च साढे पाँच मुद्राएँ सिक्के- रुपये हों तो वह कुबेर समान वैभवशाली हो क्यों न हो शीघ्र ही दारिद्रय को प्राप्त हो जाता है। प्रत्येक मनुष्य का कर्त्तव्य
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