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________________ नीति वाक्यामृतम् किसानों तथा शूद्रों का स्वभाव प्रकृति से सरल और कुटिल होता है । कृषक स्वभाव से सरल होते हैं। शूद्रों का कुटिल स्वभाव होता है ।।34 ॥ विनों के क्रोध उपशान्ति का उपाय : दानावसानः कोपो ब्राह्मणानाम् 135॥ अन्वयार्थ :- (ब्राह्मणानाम्) विनों का (कोपः) क्रोध (दानावसान:) दान लेने पर्यन्य [भवति होता है। ब्राह्मण यदि कुपित हो जाय तो उन्हें दान-सम्मान देना चाहिए । इससे उनकी कोपाग्नि शान्त हो जाती है। इष्ट-इच्छित वस्तु मिल जाने पर ब्राह्मणों का कोप नष्ट हो जाता है । दान लेना उनका मुख्य उद्देश्य है 135॥ गर्ग विद्वान ने इस विषय में लिखा है "जिस प्रकार सूर्य के उदय होने पर रात्रि का समस्त अधंकार तत्काल नष्ट हो जाता है । उसी प्रकार लोभी विप्र का क्रोध दान देने पर सर्वथा तत्काल विलीन हो जाता है । शान्त हो जाता है ।135॥ गुरुजनों के क्रोधोपशान्ति का उपाय : प्रणामावसान: कोपो गुरुणाम् ।।36 ।। अन्वयार्थ :- (गुरुणाम्) गुरुजनों का क्रोध (प्रणाभावसानः) अपराधी के प्रणाम करने पर्यन्त (कोप:) क्रोध (तिष्ठति) रहता है। विशेषार्थ :- विद्यार्थियों या शिष्यों द्वारा कुपित किया गया गुरु तब तक ही क्रोधित रहता है जब तक कि अपराधी शिष्यादि नमस्कार नहीं करता । नमन करने पर तुरन्त कोप शान्त हो जाता है । गर्ग विद्वान ने इस विषय में लिखा है - दुर्जने सुकृतं यद्वत् कृतं याति च संक्षयम् । तद्वत् कोपो गुरुणां स प्रणामेन प्रणश्यति । अर्थ :- जिस प्रकार दुष्ट के साथ किया गया उपकार नष्ट हो जाता है उसी प्रकार शिष्यादि के प्रणाम करने से ही गुरुओं का कोपानल शान्त हो जाता है 106 || क्षत्रियों के कोप शान्ति का उपाय : प्राणावसानः कोपः क्षत्रियाणाम् ।।37॥ अन्वयार्थ :- (क्षत्रियाणाम्) क्षत्रियों का (कोपः) क्रोध (प्राणावसानः) प्राणान्त करने पर्यन्त [भवति] होता क्षत्रियों का क्रोध प्राणान्त करने पर्यन्त रहता है अर्थात् चिरकाल तक रहता है । 195
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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