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________________ नीति वाक्यामृतम् अब राजनीति ज्ञान युक्त कौन राजा होता है ? समाधान : क्रमविक्रमयोरधिष्ठानं बुद्धिमानाहार्यबुद्धिर्वा ।।31 ।। अन्वयार्थ :- (क्रमविक्रमयोरधिष्ठानम्) उभयरीति से प्राप्त राज्य संचालन को (बुद्धिमान ) स्वयं जानता हो (वा) अथवा (आहार्यबुद्धिः) दूसरे मंत्रियों से राजनीति ग्रहण करे । जो भूपति शासन संचालन में स्वर्ग निपुण नो लगना सुरोग्य मन्त्रियों से उस विद्या को सीखे वही श्रेष्ठ राजा होता है । विशेषार्थ :- मनुष्य जीवन में दो प्रकार से योग्यता प्राप्त होती है :- 1. परम्परागत और 2. बाह्य साधनों से । राजकुलोत्पन्न होने से बहुत सी योग्यताएं राज्य संचालन सम्बन्धी स्वाभाविक होती हैं शौर्यता, वीर्य, तेजस्विता, प्रभुत्व आदि, दूसरी मन्त्रिमण्डल आदि के नैपुण्य-सलाह से उपलब्ध हो जाती हैं । इन दोनों प्रकार से योग्यता प्राप्त राजा ही सफल शासक हो सकता है । शुक्र विद्वान का कथन है : स बुद्धि सहितो राजा नीति शौर्य गृहं भवेत् । अथवा अमात्य बुद्धिस्तु बुद्धि हीनो विनश्यति ॥1॥ अर्थ :- जो राजा स्वयं बुद्धिमान-राजनीति में पटु है अथवा जो अमात्य की बुद्धि से प्रवृत्ति करता है वही राज्यनीति और पराक्रम का स्थान होता है । यदि बुद्धिहीन राजा होगा तो उसका राज्य टिकाऊ नहीं होगा, वह नष्ट हो जायेगा । आचार्य कुन्दकुन्द देव कहते हैं : सम्यग्विचार्य निष्पक्षो भूत्वा चापि महीपते । नीतिज्ञसम्मतः शुद्धः कर्तव्यो न्यायविस्तरः ॥1॥ परि.छे. 55. अर्थ :- सम्यक् विचार कर, निष्पक्ष होकर, नीति के अनुसार नृपति को शुद्धभाव से न्यायपूर्वक शासन विस्तार करना चाहिए । राजा कैसा हो: राज्यसाधन विस्फूर्तिवृद्धिश्चापि कथं भवेत् । कथं कोषस्य पूर्णत्वं कथमायव्ययौ च मे धनस्य परिरक्षा च कथं में वर्ततेऽधुना एतत्सर्वं हि विज्ञेयं राज्ञा स्वहित कांक्षिणा ।।5॥ प.छ.39,कुरल अर्थ :- राजा को इस बात का परिज्ञान होना आवश्यक है कि अपने राज्य की वृद्धि के साधनों की विस्फूर्ति किस प्रकार हो, वृद्धि और खजाने की पूर्ति किस प्रकार हो, धन रक्षा किस रीति से की जाय, और किस प्रक्रिया से अर्जित-संचित धन का व्यय किया जाय? इस प्रकार का विचारज्ञ भूपति उत्तम, न्यायी, धर्मवत्सल और प्रजापालक 115
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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