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नीति वाक्यामृतम्
अर्थ :- सुखाभिलाषी नृप को काम, क्रोध, लोभ, हर्ष, मान और मद इन छः शत्रु वर्गों का सदेव का पूर्ण त्याग कर देना चाहिए ॥ 11 ॥
. राजा दण्डक कामासक्त होकर शुक्राचार्य की कन्या के उपभोग की इच्छा से नष्ट हुआ। राजा जनमेजय ब्राह्मणों पर कुपित हुआ और उनके शाप से रोगी होकर जीवन समाप्त कर दिया । इसी प्रकार राजा एल लोभ से और वातापि नाम के असुर अपने अभिमान से अगस्त्य द्वारा नष्ट हुआ | 2 ||
पुलस्त्य का बेटा राय मानसे और दम्भोद्भव राजा मद से नष्ट हुआ । अर्थात् ये राजा लोग शत्रु षड् वर्गउक्त काम-क्रोधादि के आधीन होने से नष्ट हो गये 113 ॥
इसके विपरीत काम और क्रोधादि शत्रु षड्वर्ग पर विजय प्राप्त कर जितेन्द्रिय पुरुष राम और महान भाग्यशाली राजा अम्बरीष ने चिरकाल तक पृथ्वी का उपभोग किया ॥14 ॥
जो राजा इन्द्रियों पर विजय करता है और नीति मार्ग पर चलता है, सदाचारी है उसकी लक्ष्मी प्रकाशमान और कीर्ति गगनाङ्गण तक प्रसरित रहती है [15] ॥
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क्रोधादि सारांश यह है कि सुखाभिलाषी मानवों और विजिगीषु राजाओं को अनुचित स्थान करने योग्य-काम, शत्रुषड्वर्गों पर विजय प्राप्त करना चाहिए। क्योंकि इनके आश्रितों को न तो इस लोक सम्बन्धी सुख उपलब्ध होता है और न परलोक सम्बन्धी आनन्द ही प्राप्त होता है ।
कामशत्रु का विवेचनः
पर परिग्रहीतास्वनूढासु च स्त्रीषु दुरभिसन्धिः कामः ॥12 ॥
अन्वयार्थ :- ( पर परिग्रहीतासु) पर स्त्री व वेश्याओं (अनुढासु) अविवाहित कन्याओं (च) और (स्त्रीषु) स्त्रियों में ( दुरभिसन्धि ) काम भोग की अभिलाषा ( काम:) काम ( कथ्यते ) कहा जाता है ।
अन्य के साथ विवाहित, वेश्या अथवा कओं से विषय भोग करना उभयलोक में महा दुःख प्रदाता है। विशेषार्थ :- धर्मानुकूल जिसके साथ विवाह हुआ है, उसे भी विवेकी जन अलोल, सन्तोषपूर्वक मर्यादा से सेवन करते हैं फिर पर स्त्री और वेश्या जो सर्वथा त्याज्य हैं उनकी क्या बात ? उन्हें तो नागिन वत् दूर ही से त्याग देना चाहिए । नलकूबर की पत्नी ने रावण पर आसक्त होकर अपना प्रेम प्रस्ताव भेजा ! रावण ने निम्न प्रकार बुद्धिपूर्वक आदर्शनीय उत्तर दिया :
बालिका
विधवा भर्तृ संयुक्ता प्रमदाकुल वेश्या च रुपयुक्तापि परिहार्याप्रयत्नतः 11124 प. 12
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अर्थ विधवा (पतिविहीन), सौभाग्यवती, सुन्दरकुलीन कन्या, वेश्या ये कितनी भी रूप लावण्यमयी भी क्यों न हों प्रयत्नपूर्वक त्यागने योग्य हैं । अर्थात् परस्त्री सेवन व्यभिचार है दुर्गति का कारण है ।
इसी प्रकार गौतम विद्वान ने भी निम्न प्रकार लिखा है :
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