SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * नीतिवाक्यामृत ७३ . : करता है उसे विद्वानोंने गृहस्थ कहा है किन्तु इससे विरुद्ध प्रवृत्ति करनेवाला विना सींगोंका सोमवाचार्य ने लिखा है कि जिनेन्द्रभक्ति, गुरुओंकी उपासना, शास्त्रस्वाध्याय, संयम-अहिंसा, आदि प्रयोका धारण-अनशनादि तप और पात्रदान ये ६ सत्कर्तव्य गृहस्थोंके प्रत्येक दिन -रमाई यो मानव मारूपस्त्रीमें प्रासक्त, सम्यग्ज्ञान और अतिथियों--पात्रों में अनुरागयुक्त और है उसे गृहस्थ कहते हैं ।। २॥ निष्कप:-पेडिक और पारलौकिक सुस्त चाहनेवाले गृहस्थ व्यक्तिको उक्त नित्य और नैमित्तिक नयों के पालन करनेमें सदा प्रयत्नशील रहना चाहिये ।। १६ ।। शस्यों के नित्य अनुष्ठान-सदा करनेयोग्य सत्कार्य का निर्देश करते हैं: ब्रमदेवपित्रतिथिभूतयज्ञा हि नित्यमनुष्ठानम् ॥ २० ॥ अर्थ:-बाया-ब्रापिंगणधरोंकी पूजा, देवयज्ञ-ऋषभादिमहावीरपर्यन्त तीर्थकर देवोंका न पूजन, खति, जप और ध्यान आदि, पितृयज्ञ-माता iसाको आशामा बालन और उनकी सेवा भादि, अतिथियक्ष-अतिथि सत्कार और भूतयझ-प्राणीमात्रकी सेवा करना ये गृहस्थ के नित्य सोम्ब सत्कार्य है ।। २० ॥ मितिक-सीडरोंकी जयन्ती श्रादिके निमित्तको लेकर किये जानेवाले–सत्कार्योंका निर्देशकरते हैं: दर्शपौर्णमास्याद्याश्रयं नैमित्तिकम् ॥२१॥ भ:-ममावस्या और पूर्णमासी आदि शुभतिथियों में कियेजानेवाले धार्मिक उत्सब श्रादि प्रशस्त को नैमित्तिक अनुष्ठान कहते हैं। - भावार्थ-जिन शुभतिथियों में धर्मतीर्थके प्रवर्तक ऋषभादि तीर्थक्करोंके गर्भ, जन्म, तप, मान और याणक हुए हों या पूज्य महापुरुषोंका जन्म हुआ हो उनमें धार्मिक पुरुष जो महावीरजयन्ती आदि मत्सव करते हैं उसे नैमित्तिक अनुष्ठान कहते हैं ॥२॥ बसेबा गुरूपास्तिः स्वाध्यायः संयमस्तपः । दानं चैध गास्थानां षट कर्माणि दिने दिने ॥१॥ धान्द्रियोषिति यो सक्तः सम्पशानातिथिपियः । यहस्यो भन्नूनं मनोदेवतसाधकः ॥ २ यसस्तिलके सोमदेवसरिः।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy