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________________ SM- TENT andinichatane mamroudiaRAATIONAL [ ३ ] १० मत्री-समुद्देश १५३-२०६ पाहायबुद्धि-युक्त राजाका स्वरूप पर्व उसका दृष्टान्तों द्वारा समर्थन, प्रधानमंत्रोके सदगण, हनके साय-असावसे लाभ-हानि, मंत्रपूर्वक प्रारम्भ किये हुए पाहगुल्य (सन्धि-विमहादि) को सफलता, मंत्र-लाभ, मंत्र अङ्ग, मन्त्रो-कर्त्तव्य व मन्त्रणाके विषय में विचारधारा (मन्त्रके अयोग्यस्थान, मन्त्र जानने के साधन, उसे गुप्त रखने की अवधि-आदि) प्राणियोंका शत्र, स्वर्य करने योग्य कार्यको दूसरों द्वारा करानेसे हानि, स्वामोकी उन्नति-अवनटिका सेवा पर असर, मन्त्रणाकालीन मन्त्री-कर्तव्य, मन्त्र-प्रयोजन मरणान्त. जिस प्रकारका मन्त्री राजार शन है, मन्त्रियोंके कत्र्तव्य, उनपर राजकीय स्थितिका प्रभाव, उनको असफलतामें वाधक कारण, मन्त्रियों को पातके सल्लङ्घनसे राजकीय हानि, मन्त्रणा-माहात्म्य, पराक्रम-शून्यको हानि, नैतिकप्रवृत्ति से साम, हित-प्राप्ति और हित-परिहारका उपाय, मनुष्य-कर्तव्य (कम्पमें विलम्ब न करना), मधियों की संख्या सम्बन्धी विचार धारा, ईष्योल, बहुसंख्यक स्वच्छ मंत्रिोंसे हानि, १५-१७ · · राजा व मनुष्य-कर्मभ्य, मन्त्रियों की नियुक्तिमें सैद्धान्तिक तथ्य विचार, बहुसंख्यक मूर्ख मन्त्रिमनसे हानि, बहु सहायकोंसे लाभ, अकेले मन्त्रोसे कार्य की सिदि, आपतिकालमें सहायकोंकी दुर्लभता महपान्त, सहायकोंकी प्रधानता, उन्हें धन दनेसे लाभ, कार्यपुरुषोका स्वरूप,मूर्ख में मन्त्रणाकी मधिकार , कीमता-श्रादि, मूर्ख मंत्रोसे काय-सिद्धि में असफलता, उसकी समर्थक दृष्टान्स माना, शास्त्रमान-शुम्म मनसी महा-विमुखता तथा सम्पत्ति-प्राप्तिका साधन राजमुख का स्वभाव, मुर्ख मन्त्रीको रायभार सौंपनेसे हानि, कर्तव्य-च्युतके शाश्वमानकी निष्फलता, गुणहीनकी मालोचना, मन्त्रीके महत्वका कारण, मन्त्रणा अयोग्य व्यक्ति, क्षत्रियों की प्रकृति, गवे भने बाले पदार्थ, अधिकारीका लक्षण, धन-सम्पट राजमन्त्रीसे हानि, पुरुषोंकी रात, निर्दोषीको दुपा लगानेसे हानि, मित्रताके अयोग्य पुरुष सदृष्टान्त, स्नेह-नाराका कारण, रामोंके कार्य, काम. से हानि सदृष्टान्त, मनुष्य को धनलिप्सा, लोभ, जितेन्द्रिय-प्रशंसा, संतोषीका कार्यारम्भ, महामी समयमपुरुषका कार्य, भय-शाका त्यागकरके कर्तव्यमें प्रवृत्ति-माद १९६- ४ महापुरुषोंके गुण, माता व प्रियवपनोंसे लाभ, गुप्त रहस्यके प्रकाशको अवधि, महापुरुषांक बबन, नोप प्रकृति वाला मनुष्य और महापुरुषोंका स्वरूप, कार्य-सिद्धि न होने देनेवाला दोष, कुलोन पक्षण कांवरूप, अच्छी-बुरी वस्तु सदृष्टान्त , अत्यन्स क्रोध, विचार-शन्यता, परस्परकी गुबा प्रकट करनेसे हानि, शत्रु ओं पर विश्वास करना, चंचनचिच व स्वतन्त्र पुरुष-मादि -07 होनशक्तिको बलिष्ठ शत्रुसे युद्ध करनेका कटुफल, आपत्ति कालीन राजधम सरष्टास, अभिमान हानि, पात्र -विनाशके उपायोंके मानसे लाभ सदृष्टान्त, नैतिकतम्य मरष्टान्त, निरर्थक वाणी पालन, मूल व जिहीको उपदेश देने और नैतिक प्रवृत्ति-शून्य उन्नतिसे ति, कृन सबकों की हानि, बोतम अपराधियों को मृत्युदंड देनेसे लाभ, चुम्धराजकर्मचारियोको भयकरता और उनको वश करने का तरीका, राजाका मंत्री-भावि प्रकृति के साथ बर्ताव, प्रकृतिके कुपित होनेसे हानि, अवघ्य अधिकारियों के प्रति राजकतन्य, कथा गोष्ठीके अयोग्य पुरुष, मनसे कथा-गोष्ठी करने का कटुकफन्न, क्रोधीक प्रति बर्तन, कोपीके समक्ष जानेसे हानि तथा जिसका गृह में प्रवेश निष्फल है। ०१-२
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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