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________________ * नीतिवाक्यामृत कामपुरुषार्थकी अपेक्षा अर्थपुरुषार्थ (न्यायसे जीविकोपयोगी व्यापार और कृषि आदि साधनों द्वाग धनका संचय करना ) का अनुष्ठान करना ही श्रेष्ठ है। भावार्थ:- शनि दिसी मनुष्य को न्यायसे धनसंचय करनेका अवसर प्राप्त हुआ हो और उसके निकल जानेपर उसे ऐसी आर्थिक क्षति होती हो, जिससे वह परिद्रताके कारण अपना कौटुम्बिक निर्वाह करनेमें असमर्थ होकर दुःखी होता हो, तो उसे धर्म और कामपुरुषार्थोकी अपेक्षा पूर्वमें अर्थपुरुषार्थका ही मनुष्ठान करना ही श्रेयस्कर है। क्योंकि 'अर्थवालो धर्मो न भवति' अर्थात् धर्मके बिना धर्म नहीं होसकसा । अभिप्राय यह है कि गृहस्थ पुरुष दरिद्रताके कारण न धर्म प्राप्त कर सकता है और न सांसारिक सुख । मतः अर्थपुरुषार्थ मुख्य होने के कारण पूर्वमें उसका अनुष्ठान करना ही श्रेष्ठ है ॥ १६ ॥ __ नारद' विद्वान्ने भी उक्त बातकी पुष्टि की है कि दरिद्र पुरुषोंके धर्म और कामपुरुषार्थ सिद्ध नहीं होते; अतः विद्वानोंने धर्म और कामपुरुषार्थोकी अपेक्षा अर्थपुरुषार्थको श्रेष्ठ कर्तव्य बसाया है ।। १ ।।' विमर्श:-धर्माचार्योने कहा है कि "विवेकी मनुष्यको पूर्वमें धर्मपुरुषार्थका ही अनुष्ठान करना पाहिये । उसे विषयोंकी लालसा, भय, लोभ और जीवरक्षाके लोभसे कभी भी धर्म नहीं छोड़ना चाहिये। परन्तु प्राचार्यश्रीका अभिप्राय यह है कि आर्थिक संकट में फंसा हुआ दरिद्र व्यक्ति पूर्व में अर्थ-जीविकोपयोगी व्यापार आदि करे, पश्चात् उसे धर्म और कामपुरुषार्थका अनुष्ठान करना चाहिये, क्योंकि लोककी धर्मरक्षा, प्राणयात्रा और लौकिकसुख आदि सब धन द्वारा ही सम्पन्न होते हैं ।।१६।। अब तीनोंपुरुषार्थोमें अर्थ पुरुषार्थकी मुख्यता बताते हैं : धर्मकामयोरर्थमूलत्वात् ॥१७॥ अर्थः-धर्म, और काम पुरुषार्थका मूल कारण अर्थ है। अर्थात् बिना अर्थ (धन) के धर्म और कामपुरुषार्थ प्राप्त नहीं हो सकते ॥१७॥ इति कामसमुदशः समाः। ------- -- -- १ सपा व नारद: अर्थकामी न सिध्येते दरिद्रासो कथंचन । तस्मादर्थोगुरुस्ताभ्यां संचिन्त्यो शायते बुधैः ।। 1 । १ न जातु कामास भयान पोमा-। बम खोजीवितस्यापि हेतोः ।।१।। संगीत:१ पासून संस्कृत य. पुस्तक में नहीं है किन्तु मु. म. पुस्तक से संकलन किया गया है।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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