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नीतिवाक्यामृत*
अम कामी पुरुषकी हानिका निर्देश करते हैं:
कामासक्तस्य नास्ति चिकित्सितम् ॥१२॥ अर्थः कामी पुरुषको सन्मार्ग पर लाने के लिये लोकमें कोई औषधि (कामको छुपानेवाला हितो. पदेश आदि उपाय ) नहीं है क्योंकि वह हितैषियोंके हितकारक उपदेशकी अवहेलना-तिरस्कार या उपेक्षा करता है ॥१२॥
__ नीतिकार जैमिनिने' भी कहा है कि 'कामी पुरुष पिता माता और हितैषीके वचनको नहीं सुनता इससे नष्ट होजाता है ।।१।। भव स्वीमें अत्यन्त भासक्ति करनेवाले पुरुषकी हानि बताते हैं :
न तस्य धनं धर्मः शरीरं वा यस्यास्ति स्त्रीवत्यासक्तिः ॥१३॥ अर्थ:-स्त्रियों में अत्यन्त आसक्ति करनेवाले पुरुषका धन, धर्म और शरीर नष्ट होजाता है।
भावार्थः क्योंकि स्त्रियोंमें लीनरहनेवाला पुरुष कृषि और व्यापार आदि जीविकोपयोगी कार्योंसे षिमुख रहता है। अतः निधन पारिद्ध होजाता है। इसी प्रकार कामवासनाकी धुनमें लीन होकर दान पुण्य प्रावि धार्मिक अनुष्ठान नहीं करता इससे धर्मशून्य राता है। एवं अत्यन्त वीर्यके सरसे राजयरमासपेडिक भादि असाध्य रोगोंसे व्याप्त होकर अपने शरीरको कालकवलित करानेवाला-मृत्युके मुख में पहुँचानेवाला होता है ।।१३॥
निष्कर्षः-अतएव साम्पत्तिक-प्रार्थिक, धार्मिक और शारीरिक उन्नति पाहनेवाले नैतिक पुरुषको लियों में अत्यन्त प्रासक्ति नहीं करनी चाहिये ॥३।।।
नीतिकार कामन्दकने कहा है कि 'सवा स्त्रियोंके मुखको देखनेमें भासक्ति करनेवाले मनुष्योकी सम्पत्तियाँ जवानीके साथ निश्चयसे नष्ट हो जाती हैं ॥१॥
बल्लमदेव विद्वानने लिखा है कि 'जो कामी पुरुष निरन्तर अपनी प्यारी स्त्रीका सेवन करता है बते धृतराइके पिताके समान राजयश्मा-तपेदिक रोग होजाता है ॥१॥ १ तया च मिनिःनशणोति विश्वांस्य न मातुन हितस्य च। कामेन विजितो मयस्तो नारी प्रगश्चति ॥ २ सथा कामन्दक:निता संप्रसकाना बान्तामुखविलोकने । नाशमामान्ति सुव्यात यौवनेन समं शियः ॥ १॥ । तथा च पलामदेवःपः संसेवयते कामी कामिनी सतत प्रियाम् । तस्य संजायते यत्मा भूतराष्ट्रपितर्या