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________________ ४६ ॐ नीतिवाक्यामृत Marat बाब तीर्थ-पान का लक्षण करते हैं धर्मसमवायिनः कार्यसमवायिनश्च पुरुषास्तीर्थम् ॥ ५ ॥ अर्थः-धार्मिक कार्योंमें सहायक-त्यागी प्रती और विद्वान पुरुषों और व्यवहारिक कार्यो महायकसेवकजनोंको तीर्थ कहते हैं। भावार्थ:-उक्त ोनों प्रकारके तीर्थी-पात्रोंको दान देनेसे नैतिक मनुप्यका धन बढ़ना है । परम्नु जो अपने धन द्वारा उक्त सीोंका सत्कार नहीं करना इसका भन दिल्ल कारमाना ।।। यूहरुपसि' नामके विद्वानने कहा है कि 'धनाड्य पुरुपोंकी सम्पत्तियाँ तौथी-पात्रों को दी जानेमे पृद्धि को प्राप्त होती हैं ॥१॥ अब धनको नष्टकरनेवाले साधनों का निर्देश करते है.. तादात्रिक-मूलहर-कदर्येषु नासुलभः प्रत्यवायः ॥ ६ ॥ अर्थ:--तादाविक (जो व्यक्ति बिना सोचे समझे आमदनीसे भी अधिक धन वर्च करता है। मुलहर (पैतृक सम्पत्तिको उड़ानेषाला और बिल्कुल न कमानेवाला) और कार्य ( लोभी) इन तीनों प्रकारक मनुष्यो का धन नष्ट.होजाता है ।। ६॥ नीतिकार शुक्रने लिखा है कि 'विना सोचविचारके धनको खर्च करनेवाला, दमरॉकी कमाई हुई। सम्पतिको खानेषाला और लोभी ये सीनों व्यक्ति धनके नाशके स्थान हैं ।।।। मन वादाविकका लक्षण करते हैं: यः किमप्यसंचिस्योत्पन्नमर्थ व्ययति स तादाविकः ॥ ७ ॥ मर्थः-जो मनुष्य कुछ भी विचार न करके कमाए हुए धनका अपव्यय-निष्प्रयोजनस्य करता है उसे 'वादारिखक' कहते हैं। अर्थात् जो यह नहीं सोचता कि मेरी इतनी प्राय है अतएव मुझे आवश्यक प्रयोजनीभूत और आमदनीके अनुकूल खर्च करना चाहिए परन्तु बिना सोचे समझे अामदनीसे अधिक धनका अपव्यय करता है उसे तादात्विक कहते हैं ।।७॥ शुक' नामका विद्वान् लिखता है कि 'जिस व्यक्तिकी दैनिक आमदनी चार रुपये और खर्च सादे पाँच रुपया है उसकी सम्पत्ति अवश्य नष्ट होजाती है चाहे वह कितना ही धनाढ्य क्यों न हो ।। १।। १वषा पति:तीर्थेषु योजिता अर्था धनिनां दुद्धिमाप्नुयुः ।। २ तथा प शुक:अचिन्तितार्थमश्नाति योऽन्योपार्जितमतक। पणश्च वयोऽप्येते प्रत्यवायस्य मन्दिरम् ||| तथा च शुक्र:प्राग यस्य चत्वाशे निर्गमे सार्धपंचमः। तस्याः प्रक्षयं यान्ति सुप्रभूतोऽपि चेस्थितः ।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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