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________________ नीतिवाक्यामृत * 5 . सा है सो यह उसे प्राता हुआ देख कर "कहीं यह मुझसे कुछ माँग ने ले।" इस आशङ्कामे . कोपनिरूपण करने हैं :मार्गदमित्वमयमानात का नाम नहि जने ॥२१॥ सदा माँगनाले वाचकले कौन नहीं ऊब जाता ? मभी त्र जाते हैं ॥२१॥ मास' नामक बिद्वानन भी लिखा है कि कोई भी मनुष्य चाहं वह याच का मित्र या वैधु ही या सदा माँगनेवाले ने दुखी हो जाता है। उदाहरण में गाय भी अधिक दूध पीनेवाले बड़ेमे से जान मार देती है ।शा यरूर बताते हैं :--- इन्द्रियमनसोनियमानुष्ठानं तपः ।।२२।। :-पाँच इन्द्रिय ( स्पर्शन, रमना, घाण, धनु और श्रोत्र ) और मनको वशमें करना या लालसाओंको रोकना तप है ।।२।। भावार्य भी यशस्तिलक में लिखते हैं कि जो मनुष्य कायक्तेशरूप तप करता है, मंत्रोंका जाप जपना ओंको नमस्कार करता है परन्तु यदि उसके चित्तमें सांसारिक विषयभोगोंकी लालसा लगी कापस्वी नहीं कहा जासकता और न उसे इस लोक और परलोक में मुग्ख मिल सकता है। शास्त्र कागें. या कि शिमप्रकार अग्निके यिना रसोई में चावल आदि नहीं पकाये जामकते, मिट्टी के चिना घट नहीं ा तुओंके बिना वस्त्रकी उत्पत्ति नहीं होसकनी उसी प्रकार उत्कट तपश्चर्याके बिना कमौका मझा स्वभाए फहते हैं : पिदिनाचरणं निषिद्धपरिवर्जनं च नियमः ॥२३॥ प: सत्यार्थशास्त्रनिरूपित सत्कर्तव्यों (अहिंसा और सत्य आदि) का पालन और शास्त्रनिषिद्ध ( हिंसा, और मिथ्याभापण प्रादि ) का त्याग करना नियम है ।।२३|| नारद नामके विद्वानने भी कहा है कि शास्त्रविहित व्रतों ( अहिंसा और सत्य आदि ) का गर्दिन परिपालन करना और मद्यपानादि शास्त्रनिषिद्धका त्याग करना नियम है ।।।' . तथा च व्यास :मित्रे बन्धुवानो वातिप्रार्थमादितं कुर्यात् ? अपि यत्समतिविवन्त विषाणैरधिक्षिति धेनुः ।।।। देखो कस्लूीपकरएका तपं.दार । समानारत:यदः क्रियते सम्यगन्तरायविनितं। नभक्षयग्निविद्धयो नियमः स उदाहनः ||
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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