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________________ प्रकोणक समुदश रति (मैथुन), मंत्र व आहार में प्रवृत्त हुए किसो मी पुरुष के पास उस समय न जावे । क्यों कि पति क्रिया में प्रवृत्त पुरुष लना के कारण अपने पास पाये हुए मनुष्य से और विरोध करने लगता है । इसीप्रकार मंत्रकाल में आये हुए व्यक्ति से मंत्र-भेद की आशंका रहती है। इससे वा भीष का पात्र होता है । एवं भोजन की वेला में प्रज्ञान व जाभवश अधिक खाने वाला यदि वमन कर देता है या उसे उबर रोगजाता है तो पाने वाले का दृष्टिदोष समझाजाता है, जिसके कारग माहार करने वाला उससे घृणा व द्वंष करने लगता है। अतः नुक्त रति आदि की बेला में किसी के पास नहो जाना चाहिये ।। ४६ ।। गाय वगैरह पशुओं पर विश्वास न करे चाहे वे अच्छी तरह से परिचत (विश्वसनीय) भी कमोल ॥ ४० शुक ने भी रति व मंत्र आदि के ममय समीप में जाने का निषेध किया है और बल्लभदेव ने पाणिनीय-मादि के घातक सिह-मादि के दृशान्त द्वारा उक्त बात की पुष्टि की है ॥ १२ ॥ मतवाजे हाथी पर भारोहण (बदना) करने वाले मनुष्य के जीवन में सन्देह रहता है और यदि वह भाग्यवश जीवित बच जाता है, तो निश्चय से उसके शारीरिक अङ्गीपान मा होजाते हैं-टूट जाते हैं। ४८ । घोड़े पर सवार होकर जो नसमे अत्यधिक बिनोद-क्रीड़ा की जाती है, वह मवार के शारीरिक भोपाल तोड़े बिना विश्राम नहीं लेती ॥ ४६॥ गौतम व रेभ्य' ने भी मतवाले हाथी पर सवारी करने से और घोड़े वार। पति कीड़ा करने से उक्त प्रकार हानि निर्दिष्ट की है ॥ १॥ ____ जो ऋणी पुरुष, ऋण देने वाले धनाढ्य पुरुष का पओ विना चुकाये मर जाता है. इसे दुसरे जन्म में पास होकर उसका ऋण चुकाना पड़ता है, परन्तु साधु, ब्राह्मण अत्रियों पर उक्त नियम लाग नहीं होता क्योंकि साधु ष विद्वान हामणसे धनायोका हित साधन होता है, अत: वे ऋणी नहीं रहते, इसीप्रकार अत्रिव राजा लोग जो प्रजा से टेक्स नेते हैं वह कर्जा ही नहीं कहा जाता॥ ५१ ॥ नारद ने भी कर्जा न चुकाने वाले के विषय में वक्त बात की पुष्टि की है ॥ १ ॥ जिसका भोजन व शमन रोगादि के कारण सुखदायक नहीं है, उसे अपने शरीर को मेरी समझना चाहिये। क्योंकि जिस प्रकार शत्रु के भय से स्वेच्छा पूर्वक भोजन व शयन नहीं -.-- -. . - . ...- . --- - . - सपा-शुक्र-निमत्रासन विधं कुर्वाणो नोपगम्पते | अभीसमर Rोकोऽपि यतो घमवाप्नुयात् ॥ ३ ॥ १ सपा-बसामदेव:-सिंहो म्माकरणस्य का रहस्त प्रासान् प्रियान् पारुपाने । मीमांसातमुन्ममाव वसा हस्ती मुनि जैमिनि ॥ १ ॥ बम्बोजाणनिधि जराम मरो पेवावटे पिंगलं । पाहानाचेतसामतिकषां कोऽस्विररचा गुण ॥१॥ ६ व्या व गौतमः-यो मोडाम्मच नागेन्द्र समारोहति दुर्मतिः । तस्य जीवितनाशः स्वागावभंगस्न निश्चित: 20 " तथा परमः-भाय' कहते मस्तु पाजिकीको सौनुको । गात्रभंगो भवेत्तस्य यस्य पवनं यथा ॥ १॥ * वा मारल:- पति को वस्तु पनिकाय कला देहान्तामनुप्राप्त स्तस्व दासत्मानुशात् ।। ।। -..
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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