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________________ प्रकीर्णक समुहेश meii.ra ........ प्रकार के होते हैं-१ बचन कवि जो भाचार्य श्री धीरनन्दी का दाम पारिके समान नलित पदों द्वारा अम्य रचना करता हो, २ प्रकवि जो महाकवि हरिवन व भारवि कवि समान गूदार्थ बाने काव्य का रचयिता हो, ३-भय कोष जो भगवजिनसेचाय या माप कवि समान मलित शम्द युक्त और गूढाथे युक्त काध्य माला का गुम्फन करता हो, ४-चित्र कवि (चित्रालंकारयुक्त कान्य रचयिता), ५-वर्ग कवि (शम्दारम्बर युक्त) काव्य बनाने वाला, ६--दुरकरि कवि - बाणिक्य माद कवियों के समान अत्यन्त कठिन शब्द कुसुमों द्वारा काध्य माल! गुम्फित करने वाला, "-अरोपकी जिसकी काय सपना कधिकर न हो. और ८-सम्मुखाभ्यवहारी-श्रोताओं के समन तत्काल काम्यरचना करने वाला ॥७॥ मानसिक प्रसमता. सवितामा मों (पद्यरचनाकी कला आदि) में चातुर्य, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पुरुषार्थों का सरलता से सम्यग्यान होना, एवं मास्वामो प्राचार्य व व्यास भादि के समान संभार पर्यन्त स्वामी कीर्ति रहना इतनी चीजों का नाम कवि होने से होता है ।।८।। पहज, ऋषम गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद, (सा, रे, गा, मा, पा, धा, नो, इन सातों स्वरों का पालाप शुख (एक स्वग्में दूसरे स्वरका सांकर्य-संम्मिश्रण न होना हो श्रोत्रन्द्रियको मस्यन्त प्रिय मालूम हो. (जिसमें प्रत्यक्ष मिठास हो)सकोमन पद रचना- युत. अथवा अभिनय (नाट्य ) कियामें निपुपता का प्रदर्शक हो, जिसके पदोस्चारण में घनाई हो, जिसमें त्रिमात्रा वाले परज व ऋषभ श्रादि स्वरों का विस्तार (पारोहीपन )व संकोच (अवरोहीपन) वर्तमान हो, जिसमें एक राग से दूसरे गम का संक्रमण वर्तमान हो अथवा राग-ध पाया जाये, जिम राग में गीत प्रारम्भ किया गया हो उसी राम में उसका निर्वाह (समाप्ति) हो एवं जिसे सुन कर हृदय फड़क (अत्यन्त मानवादित) छठे ये गायन के गुण हैं |केशवा-शून्य, पांच प्रकार का ताज तथा व मीत व नृत्य के अनुकूल बजने वाला, वा (काजे) संबन्धी दोषों से रहित (निष) जिसमें यति (विश्रान्ति) यथोषित व प्रगट रीतिस पार्द जावे एवं जिनके सुनने से प्रोत्रन्द्रिय को सुख प्रतीत हो, ये बाजे के गुण हैं । १. ॥ जिसमें नेत्र, हाथ व पैरों की संचालन क्रिया का एक काल में मिलाए गाने व जाने के अनुकूल एवं यथोचित पाया जाये संगीत (गाने बजाने) का अनुसरण करने वाला, जिसमें गायनाचार्य द्वारा सूषित किये हुये पचन चौर अमितभिनय (नस्य ) द्वारा भा-संचालन अभिव्यक्त किया गया हो तथा हार मादि नवरस और मालम्बन भाव सहीपन भाषों के प्रदर्शन से जिसमें दर्शकों को नावण्य प्रवीत हो, ये नपके गुश हैं अर्थात् अक्त गुको वाया नृत्य श्रेष्ठ माना गया है ॥ ११ ॥ ___महापुरुष, निच गृहस्थ, पत्कालीन मुख चाहने वालों के कार्य, दानविचार, कर्जा देने के कटुफल, कर्वा खेनेवाले के स्नेहादि की अवधि, सस्थासत्य निणय व पापियों के दुष्कर्म स महान् यः खन्चार्वोऽपि न दुचनं ते ॥ १२ ॥ स किं गृहाभमी यत्रागस्याधिनो न भवन्ति कतार्थाः ॥ १३ ॥ ऋग्रहलेन धर्मः सस सेवा पक्षिज्या १ ताराविकानां नापविहितवृत्तीनां ॥१४ ।। स्वरष विषमानमर्षिम्पो देयं नाविधमान ॥ १५ ॥ अब. दाहरासन्न फल परोपास्ति। सः परिभवः प्रस्तावासाभरव॥१६॥ भदातुस्तावस्नेहा
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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