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________________ नीतिवाक्यामृत ................................................................. का पैदा होते ही मरजाना अच्छा है, परन्तु उसका नीष कुन्नवाले वर के साथ विवाह करना अथवा वसका नीय कुल में पैदा होना अच्छा नहीं ॥ २५ ॥ कन्या के विषय में, पुनर्विवाह में स्मृतिकारों का अभिमत, विवाह संबंध, स्त्री से लाभ, गृह का लहणा, कुन्नबधू की रक्षा के उपाय, वेश्या का त्याग व उसके कुत्लागत कार्य सम्यग्यवृत्ता कन्या तावत्सन्देहास्पदं यान पाणिनः A ॥ २६ ॥ विकृतप्रत्पदाऽपि पुनर्विवाहमह तीति स्मृतिकाराः ॥ २७ ॥ भानुलाम्येन चतुस्त्रिाद्विवर्णाः कन्यामाजनाः ब्राह्मणक्षत्रियविशः ॥ २०॥ देशापेचो मातुलसंगन्धः ॥ २९ ॥ धर्म सन्ततिरनुपहता रतिगृहबार्तासुविहितत्वमाभिजात्याचारविशुद्धियद्विजातिथिवान्धवसत्कारानवचत्वं च दारकाण: फलं ॥ ३० ॥ गृहिणी गृहमुच्यते न पुनः कुख्यकटसंघातः ॥ ३१॥ गृहकर्मवि-- नियोगः परिपिटाभवमानात सदाचारः मातृव्यंजनस्त्रीजनाबरोध इति कुलवधूनां रक्षणापायः ॥ ३२ ॥ बकशिलाक'रवर्षरसमा हि वेश्याः फस्तास्वाभिजातोऽभिरज्येत ॥३३॥ दानीभाग्यं संस्कृती परोपभोग्यत्व भासत्तो परिभवो मरणं वा महोपकारेप्यनात्मीयत्व बहुकालसंबन्धेऽपि त्यक्तानां तदेव पुरुपान्तरगामित्वमिति वेश्यानां कुलागतो धर्मः ३४ अर्थ-जब तक कन्या का विषाह-संस्कार नहीं होता, तब तक वह सन्देह का स्थान होती है, चाहे वह सपाचारिणो हो ।॥ २६ ॥ जिसकी पहले सगाई की जा चुकी हो ऐसी कन्या का बर यदि विकृत-सूला गया या काल कणित-दो गया हो, वो उसका पुनर्विवाह-प्रम्य परके साथ विवाह करना योग्य है ऐसा स्मृतिकार मानते हैं ।। २७ ॥ प्रामण, जत्रिय और वैश्य अनुलोम (क्रम) से सरों तीनों व दोनों वर्ण को कन्यानों से विवाह करने के पात्र हैं। अर्थात् प्रामण चारों वर्ण (बामण, क्षत्रिय वैश्य व शून ) की और दनिय तीनों रस (पत्रिम, बैरव व शह) की एवं वैश्व दोनों बम (वैश्य व शूट) की कन्यामों के साथ विवाह कर सकता है ॥ १८॥ मामाका विवाह भादि संबंध देश x की अपेक्षासे योग्य समझा जाता है। अर्थात-जिस देश व कुल में मामा पुत्रीका संबंधमिव है, वहां उसे योग्य मानाजाता है, सर्वत्र नही ॥२॥धर्मपरम्पराका पाएशा पलाते रहना भयवा धार्मिक सम्जाति सन्तान का जाम होना, कामोपभोग में मापानभाना, गृह व्याथा का सुचारु रूप से संहासन,कुलीबा वाचार-विदेव, प्राण प्रतिषि और पंधुजनों का निषोप सम्मान एक प्रकार के वाम धर्मपत्नी द्वारा सम्पन्न होते है ॥३०॥जहा पर स्वीपमान है, उसे 'गृह' कहा जाता है न कि केवल सही पापा के मिट्टी के संपास से बने हुए गृह को ॥ ३८ ॥ कुसमधुषों की रक्षा कनिम्न उपाय हैं --गृह काम धन्धों में निरन्तर लगाये रखना, २इसे बर्ष लिये सीमित (पोड़ा) पन देना, ३ स्वच्छन्द न होने A मु०म० प्रतिमें 'सम्पमाला इत्यादि प्रमतर है, जिसका पाकिब काम्बा का विवाह संस्थानों होता सब कह परी जाने पर भी (सगाई होने पर मी) संहका स्वामी है1-सम्पादक
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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