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________________ नीतिबाक्यामृत ___राजा किमी अकेले व्यक्ति को सैन्याधिकारी न बनाये, क्योंकि अकेला सैन्याधिकारी स्वेच्छा. पारी और सेना के कारण राजा से भी अधिक शक्तिशाली होता है, इसलिये बह शव द्वारा कोराने के भपराध-वश अपने स्वामी से प्रतिकूल होकर सेना की सहायता से किसी समय राजाका राष्ट्र का महाम् अनर्थ उत्पन्न कर सकता है ॥२॥ भागुरि' ने भी माकेले व्यक्ति को सैनाध्य बनाने से वक्त प्रकार की हानि पवाई है ॥ १ ॥ ऋणी राजा, वीरता से लाभ, युद्ध से विमुख होने वाले को हानि, युद्ध के लिये प्रस्थान करने वाले राजा का व पर्वतनिवासी गुप्तचरों का कर्तव्य, सेना के पड़ाव-योग्य स्थान, भयोग्य पदाय से हानि व शत्रुभूमि में प्रविष्ट होने के विषय में राज-कत्तव्य राजा राजकार्येषु मृतानां सन्ततिमपोषयन्नृणभागी स्यात् साधु नोपचयते तंत्रेण ।। ६३ ॥ स्वामिनः पुरः सरग युद्ध ऽश्वमेघसमं ।'६४॥ युधि स्वामिन परित्यजतो नास्तीहासत्र च कुशलं ॥६॥ विग्रहायोच्चलितस्या बलं सर्वदा सन्नद्धमासीत्, सेनापतिः प्रयाणमावास च कुर्वीत चतुर्दिशमनीकान्यदूरेण संचरेयुस्तिष्ठेयुश्च ।। ६६ ॥ धूमाग्निरजोविणणध्वनिव्याजेनाटविकाः प्रणधयः परवलाम्यागच्छन्ति निवेदयेयुः ।।१७।। पुरुषप्रमाणोत्सेधमवहुजनविनिवेशनाचरणापसरणयुक्तमग्रतो महामण्डपाकाशं च तदंगमध्यास्य सर्वदा स्थानं दद्यान् ॥६८ || सर्वसाधारणभूमिक तिष्ठतो नास्ति शरीररक्षा | EK | भूचरो दोलाचरस्तुरंगचरो वा न कदाचित् परभूमौ प्रविति ।।१००॥ करिणं जपाशं वाप्यन्यासीन न प्रभवन्ति तुद्रोपद्रवाः ॥१.१॥ भर्थ-यदि राजा राजकीय कार्यों-युद्ध-मादि में मरे हुए सैनिक-कादि सेवकों की सन्तति-पुत्र-पौत्रादि का पालन-पोषण मही करता, तो यह उनका ऋणी रहता है और पेसा अनर्थ करने से प्रतिकुल हुए मंत्री-मादि प्रकृतिवर्ग भी इसकी भली-भांति सेवा नहीं करते। अतएव राजा को राजकोय कार्य में निधनता को प्राप्त हुए सेवकों की सम्पति का पालन-पोषण करना चाहिये ।।३।। वशिष्ठ ने भी गुर में मारे गये सैनिकों की सम्पतिका पालन-पोषण म करने वाले सभा को निस्सन्देह उनकी हत्या का पाप होना बताया है ।।१।। लबाई में अपने स्वामी से भागे जाकर शत्रु से युद्ध करने वाले वीर सैनिकको प्रश्वमेघ समान फल मिलता है। विमर्श यह है कि लौकिक रिसे उक्त उदाहरण समझना चाहिये, क्योंकि धार्मिक दृष्टि से अश्वमेघ यज्ञ में संकल्पी स्थल जीवहिसा होती है, पता ससा करने वाला-प्रनिष्ट फल-दुर्गव के भयानक दुख भोगता है, जिसका स्पष्टीकरण यशस्तिनक में ही पाषायें भी ने भी किया है ॥६॥ तथा भागुनि:- एक र्याक सैन्येशं सुसमर्थ विशेषत: | HITE: परे भेद माजिद स परैः क्रियात् ।।। १ तया व पशिल:- मृतानां पुरत: संख्ये पोऽपत्यानि न पोपवेत् । सेतो लहस्पाबा: पूर्व गृडते मात्र संशयः । ॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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