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________________ युद्ध समुद्देश अर्थ - अपराधी शत्रु पर विजय प्राप्त करने में क्षमा या उपेक्षा का कारण नहीं, किन्तु विजिग का कोष व सैन्यशक्तिरूप तेज ही कारण है । अर्थात् - तेज से ही शत्रु जीता जा सकता है, न कि क्षम या उपेक्षा से | ॥ ५६ ।। जिस प्रकार छोटा सा पत्थर शक्तिशाली ( वजनदार ) दोनेक कारणा बड़े घड़े को कड़ने को दमता रखता है, उसी प्रकार विजिगीषु भी सैन्य शक्ति युक्त होने के कारण महान् शत्रु को नष्ट करने की क्षमता रखता है, अतः शक्तिशाली को हीन शक्ति वाले शत्रु के साथ युद्ध करना चाहिये ॥६०॥ SE विनि' ने भी शनि शाली विजिगीषु द्वारा महान शत्र नष्ट किये जाने के विषय में लिखा है ३१ ॥ भग्ग को अनुकुलता, उत्तम व कर्त्तव्यशील पुरुषों की प्राप्ति और विरोधियों का अभाव इन गुणों सेविजिगांव की उन्नति होती है ।। ६१ ।। गुरु ने भी विजिगीषु के उक्त गुणों का निर्देश किया है ॥ १ ॥ जब विजिगीषु स्वयं शक्तिहीन हो और शत्रु विशेष पराक्रमी व प्रवल सैन्य-युक्त हो, तो उसके सन्धि कर लेनी चाहिये ।। ६७ ।। शुक्र ने भी शक्तिहोन विजिगीषु को शनिशाली शत्र के साथ युद्ध करने का निषेध किया है १ दुःख से क्रोध और क्रोध से तेज उत्पन्न होता है, पश्चात् उस तेज द्वारा शत्रु पराक्रम करने के जिये प्रेरित किया जाता है। अर्थात् विजिगीषु द्वारा शत्रु कस्लेशित किया जाता है. तब उसके हृदय में करूरी भीषण ज्वाला धधकती है, जिसके फलस्वरूप उसमें तेज उत्पन्न होता है जो कि उसे पराक्रमो बनाने में सहायक होता है अतः वोर सैन्यशक्तिवाला व वात्र अपने भाग्य की प्रतिकूलवावश यदि एक बार विजिगीषु द्वारा हरा दिया जाता है परन्तु उसका परिणाम विजिगीषु के लिये महाभयङ्कर होता है, क्योंकि वह पुनः बार बार हमला करने तत्पर रहता है, इसलिये प्रवल सैनिकों वाले शत्र के साथ युद्ध न कर सन्चि ही करनी चाहिये ॥ ६३ ॥ किसी विद्वान ने तो दुःख व क्रोध से उत्पन्न हुये विजिगीषु के तेज को विजय का कारण बताया है ॥ १ । ओsay अपने जीवन की भी अभिलाषा नहीं करता मृत्यु से भी नहीं डरता - उसकी वीरता का वेग उसे शत्रु से युद्ध करने के लिये प्रेरित करता है ॥ ६४ ॥ 3 नारद ने भी मृत्यु से डरने वालों में कायरता और न डरने वालों में वीरता व विजय प्राप्ति का निरूपया किया है ॥ १ ॥ जिस प्रकार शेर का बच्चा छोटा होने पर भी शक्तिशाली होने के कारण बड़े भारो हाथी को मार डालता है, उसी प्रकार विजिगीषु भी प्रबल सैन्य को शक्ति से देता है ।। ६५ ।। महान शत्र को युद्ध १ तथा जैमिनिः- यदि स्याच्छक्तिसंयुक्त बत्रुः शत्रोश्च भूपतिः । तदा हन्ति परं २ ला गुरुः रिस्पान प्राजनं कर्म प्रतियोग्य तथा तथा प्रतिपत्वं ३ तथा च शुक्रः--यदा स्वाद्वीर्यपान शत्रुः श्रेष्ठदैन्यसमन्वितः । श्रात्मानं ४ तथा प्रोक्तम्ः दुःखाम तेजो बन् पुंसां लम्जायते ५ तथाच नारदः वनोगं तेवां जायते श्री में परास्त कर यदि स्थातिपुष्कलम् 1 विजिगीषोरिमे गुम्बाः ॥११ तदा तस्योपचर्यते ॥ 15 ममरे चैव निवर्तते ॥११॥ स्वस्वान्कान मृत्यो भने [रायुर्जयन्त्रिताः ] ॥11॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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