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________________ नोतिवाक्यामृत ......... ....here नारद ने भी जन समुदाय का मुखिया होना निरर्थक बताया है ।।१।। वह सभा प्रशंसनीय नहीं कही जा सकती--निंद्य है जिसमें प्रयोजन सिद्धि के लिये आये हुए प्रयोजनार्थी पुरुष को पक्षपात आदि के कारण हानि होती है ।। ६३ ।।। जेमिनि' ने भी पक्ष गत वश प्रयोजनार्थी का घात करने वाली सभा को स्याभ्य कहा है ॥ १ ॥ गृह में पदार्पण की हुई लक्ष्मी-सम्पत्तिका कभी भी किसी कारण से - विथि बादि अशुभ आमकर-तिरस्कार नहीं करना चाहिए, किन्तु नसे तत्काल प्रहगा कर लेना चाहिए, क्योंकि जिस समय सारनी का आगमन होता है उस समय की तिथि व नक्षत्र शुभ और R बलिष्ठ गिने जाते हैं ।। ४ ।। गर्ग ने भी लक्ष्मी की प्राप्ति का दिवस शुभ बताया है ॥१॥ जिस प्रकार हाथों से हाथी बांधा जाता है, उसी प्रकार धन से धन कमाया जाता है | | समिनि' ते मी धनोपार्जन का यही उपाय निर्दिष्ट किया है ॥१॥ गानी नि का लिगाका, पशनाश गासीनुत्ति वाले 4 पर प्रणेय राजा का स्वरूप, स्वामो की मात्रा का पाक्त, राजा द्वारा प्राश व दुषितधन तथा धन-प्राप्ति - न केवलाभ्यां बुद्धिपौरुषाभ्यां महतो जनस्य सम्भूयोत्थाने संघातविधातेन दण्ड प्रणयेच्छतमपज्यं सहस्रमदण्ड्यं न प्रणयेत् ॥६६॥ सा राजन्वती भूमिर्यस्यां नासुरवृत्ती राजा १६७|| परप्रणेया राजाऽपरीचितार्थमानाणहरोऽसुरवृत्तिः ॥ ६ ॥ परकोपप्रसादानुवृत्तिः परप्रणेयः ।। ६8 || सत्स्वामिच्छन्दोऽनुवर्तनं श्रेयो यम भवत्यायस्यामहिताय ॥१०० ॥ निरनुबन्धः मर्थानुबंध चार्थमनुग्रहीयात् ॥१०१ ॥ नासावर्थो धनाय यत्रायत्यो महानर्थानुबंधः ।। १०२ ॥ लाभस्त्रिविधो नवो भूतपूर्वः पत्यश्च ।। १०३॥ अर्थ-राजा को अपनी बुद्धि व पौरुष के गर्य में बाहर एकमत रखने वाले उत्तम पुरुषों के समूह को अपराधो बता कर दण्विन नहीं करना चाहिये, क्यों कि एक सी बात कहने वाले सौ आदमी बध के भयोग्य वजार आइमो दण्ड के प्रयाम्य होते हैं, अत: बन्हें दरास न देना चाहिये ॥८॥ १ तमा मार-बहूमामप्रगो भाषा यो ते न नत परः। तस्य सिद्धीमो लाभः स्यादसिद्धी बनवाव्यता ॥१॥ •ाब जैमिनिः-समाया पक्षपातन कार्याधी पत्र हन्यते । न सा सभा भवेच्छस्पा शिष्टस्माज्या सुदूरसः ।। । पता च गर्ग:-गृहातस्प पित्तस्स दिनयुद्धि मचिन्तयेत् । पागछति यदा रितं तदैव सुशुम दिन ॥१॥ तथा ममिमिः-मयों श्रय बन्यन्ते ग नेरिक महा गजः । गजा गरिना न स्युस्था प्रविना तथा ॥ १॥ A मु. मू० प्रतिमें 'महतो बनस्य सम्भूयोस्याने समात विघातेन । दर प्रणरेत् समयं सहसमवध्यमिति' इत्र प्रकार का पाठान्तर धर्वमान है जिसका अर्थ यह है कि यदि कुछ लोग संगठित होकर बगावत करने तत्पर हुए, हो, उस समय सजा को उन्हें भेद नीति द्वारा फोष फार करके पृथक र काकै सजा देनी चाहिये ।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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