SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 377
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यवहार समुदेश के लिये नोच पुरुष के भी पास जाकर उसके वचन सुनने चाहिए और अनुकूज होने पर मानना चाहा! अन्यथा नहीं ।। ३४ ।। गुरु ' विद्वान् ने भी नीच पुरुष के विषय में यही कहा है॥१॥ स्वार्थी मनुष्य अपने दोषों पर दृष्टि नहीं डालता ॥ ३५ ।। गृहसासी से अनुराग करनेवाला अपने गृह, पल्ली व गृह के स्वामी को नष्ट करदेता है ।। ३६ ।। वेश्या-संग्रह देव, माया, स्त्री बन्धुजनों से पृथक कराने वाला उच्चाटन -मंत्र है मतः उक्त हानि व धार्मिक क्षतिसे बचने के लिए विवेकी मनुष्यको बेश्या संग्रह का त्याग करना चाहिये ॥ ३७ ।। गुरु'- विद्वान् ने भी वेश्यासंग्रह से उक्त हानि बताई है ॥३॥ लोगों का पाप जानकर आश्चर्य होता है कि जिसके कारण वे लोग अपनी रति के समान सुन्दर स्त्री को भी नीम सदृश अप्रिय और दूसरे की कुरूप स्त्रीको देवाङ्गनासम प्रिय मान बैठते हैं ।३८) एक स्त्री से लाभ, पास्त्रो व वेश्यासेवन का त्याग, सुखके कारण, गृह-प्रवेश, जोम व याचना से हानि, दारिद्र-दोष ५ धनाढ्य को प्रशंमा स सुखी यस्य एक एव दारपरिग्रहः ।। ३६ ।। व्यसनिनो यथासस्वमिसारिकास न तथाथेवतीषु ॥ ४०॥ महा काययस्तादिन्यानात देर नापती ४१॥ मस्तरणं कम्बलो जीवधन गर्दभः परिग्रहो बोढा सर्वकर्माणश्च भृत्या इति कस्य नाम न सखाबहानिA || ४२ ।। लोभवति भवन्ति विफला। सर्वं गुणा:B॥ १३ ॥ प्रार्थना के नाम न लषयति ॥४४॥ न दारिद्रयात्पर पुरुषस्य लाञ्छनमस्ति यत्संगेन सवें गुणा निष्फलता यान्ति ॥ ४५ ॥ अलब्धार्थोपि लोको धनिनो भाण्डो भवति ॥ ४६ ॥ धनिनो पतयोऽपि चाटुकाराः ॥ ४७॥ अर्थ-वही सुखी है जिसके एक स्त्रो है ॥ ३ ॥ धाणिक्य ने भी दो पत्नियों को कलह का बीज बताया है ॥ १॥ जिस प्रकार व्यभिचारी पुरुष को ग्यभिचारिणी स्त्रियों से सुद प्राप्त नहीं होता, उसी प्रकार घेश्यामों से भी उसे कदापि सुख प्राप्त नहीं हो सकता, क्योंकि वेश्यामों में अनुराग करने से सथा च गुरु:-अपि नाचोऽपि गन्तम्यः कार्ये महति संस्यिते । यदि स्मासानोमा तरकाय मया त्यजेन्द ५ तथा प गुरु:-- पेश्या विस्तयेरपुरेसा किमप्यस्ति मन्दिरे। स्वकार्यमेव कुर्वाणा नरः सोऽपि च तासात || करवा शोबपरित्यागं तस्वा बाम्बो भरपेत् । ततश्च मुख्यते सर्वार्यावाम्भवपूर्णः ॥ २ ॥ ६ था चचाणिक्य:-अपि साधुसनोत्पने माय या संस्थिते । परस्पन भो परति गृहाम्नव ापन | A,B,C, रस चिम्हाशित सून मु. म. प्रति से संकलम किये गये हैं।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy