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________________ दिवसानुष्ठान समुद्देश 100 d मी ईश्वर के अर्हन, अज, अनन्त शंभु, बुद्ध व तमोऽन्तक ये विशेष नाम है । सारांश यह है कि उसे त्रिलोक पूज्पतासे 'ईन्' जन्मरहित होनेसे 'अज' मृत्यु-शूभ्यवास 'अनन्त' आत्मिक सुख-शान्तिको प्राप्त होने में 'शंभु' केवल ज्ञानीके कारण 'चंद्र' अज्ञानांधकार का विध्वंसक होनेसे 'तमोऽन्त कहा गया है ।। ६७|| ** - verth कर्तव्य पालन, अनियमित समयका कार्य कर्तव्य में विलम्ब करनेसे हानि, आत्मरक्षा राज कर्तव्य, गज्ञ-मभार्मे प्रवेश के अयोग्य, विनय, स्वयं देखरेख करने योग्य कार्य, कुलंगत का त्याग, हिंसाप्रधान कामकोका निषेध ३३१ श्रात्मसुखानवरोधेन कार्याय नक्तमहश्च विभजेत् ॥ ६८ ॥ कालानियमेन कार्यानुष्ठानं हि मरणसमं ॥ ६६ ॥ आत्यन्तिके फायें नास्त्यत्रसरः ॥ ७० ॥ अवश्यं कर्तव्ये कालं न यापयेत् ॥७१|| श्रात्मरक्षार्या कदाचिदपि न प्रमाद्येत ॥७२॥ सवत्सां धेनु' प्रदक्षिणीकृत्य धर्मासनं यायाव ||७३ || अनधिकृतोऽनभिमतश्च न राजसभां प्रविशेत् ॥१७४ | भाराभ्यमुत्थायाभिवादयेत् ॥ ७५॥ देवगुरुधर्मकार्याणि स्वयं पश्येत् ॥७६॥ कुहकामिचारकर्मकारिभिः सह न सङ्गच्छेत् ॥७७॥ प्राणयुपघातेन कामक्रीड़ा न प्रवर्तयेत् ॥७८॥ अर्थ- प्रत्येक व्यक्ति शारीरिक सुख में बाधा न डालता हुआ दिनरात कर्तव्यपालन करता रहे ||६|| निश्चित समय उपरान्त किया हुआ कार्य मृत्युके समान हानिकारक है, अवश्य नैतिक व्यक्तिको अपने कार्य निश्चित समय पर ही करने चाहिये, अन्यथा समय ही उसके फलको पी लेता है ६ वादी सिंह भाचार्यने भी कहा है कि जिस प्रकार फल लगने पर अनार आदिके पुलोंमें से उन के पुरुष तोड़ने की अभिलाषा करना व्यर्थ हैं, उसी प्रकार समय थूकनेपर कार्य करनेसे सफलता प्राप्ति की आशा अर्थ है ॥१॥ नैतिक व्यक्ति शाश्वत् कम्याण करनेवाले सरफर्तव्योंके पालन में मौका न चूके ||७०१ मनुभाको नैतिक, धार्मिक और आर्थिक लाभ आदिकं कारण अवश्य करने योग्य कार्यों में बिलम्ब नहीं करना चाहिये, अम्बथा उसका कोई इष्ट प्रयोजन सिद्ध नहीं हो पाता ||* १ || मनुष्य को शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक कष्टों को दूर कर अपनी रक्षा करनेमें श्रावस्य नहीं करना चाहिये ॥७२॥ राजा को बड़े सहित गावकी - 'कान्तिके कार्ये मास्स्यो धर्मक्ष्य' ऐसा सुत्र मु. पुस्तक में पाठान्तर है, जिसका अर्थ यह है कि का करने चाडे सत्कर्णम्यों में धर्म शुरु है, नहीं, योंकि यह B एक सूत्र मु. ब. पुस्तक का किया गया है। ऐसा पाठ है, जिसका धर्म यह है कि राजा तथाचारः *111 - है। सं. टी. पुस्तक 'सबस्तु प्राधिकरण दाबान् सहित मायकी प्रक्षिका देकर धर्मकी उपासना करे । संपुति ममी किया 4 चामा सम्ब
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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