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________________ दिवसानुष्ठान समुहेश ३२० TO DADDROD.... Read A DAAMR..... .............MaraPIRAAMRAPPAMADHAN ranteeMer है ॥४॥ भोजन करने वाला व्यक्ति आहारको बेला ( ममय ) में अपनी थाली भोजन करनेवाले सहभोजियोंसे बेष्ठित रक्खे ॥४शा मनुष्य इसप्रकार-अपही जठराग्निकी शक्ति के अनुकूल-भोजन करे जिससे उसकी अग्नि शाम को वा दूसरे दिन भी मन्द न होने पावे ॥४२॥ भोजन की मात्रा-परिमाण के विषय में कोई निश्चित सिखाम्त नहीं है ।।४।। निश्चय से मनुष्य जठराग्निकी कष्ट, मध्यम व अल्प शक्ति के अनुकूल उत्कृष्ट, मम्बम व सम्प-भोजन करे। अर्थात् भूखके अनुसार भोजन फरे। चरक संहिता में भी आहारको मात्राके विषय में लिखा है कि माहारमात्रा पुनरग्निवलापेक्षिणी' अथात पाहारकी मात्रा मनुष्यकी जठराग्निकी उत्कृष्ट, मध्यम व अल्प शक्तिकी अपेक्षा करती है (उसके अनकूल होती है), भतः जठराग्नि की शक्ति के अनुकूल पाहार करना चाहिये ॥४४॥ भूखसे अधिक खानेवाला व्यक्ति अपना शरीर व जठराग्निको शोण करता है ४४ प्रदीन हुई अठराग्नि मुख्से थोड़ा भोजन करने से क श क तो मिससे निक लानेवाले के भन्नका परिपाक बड़ी कठिनाई से होता है ॥४॥ परिश्रम से पीड़ित ग्यक्ति द्वारा सत्काल पिया हुमा बल व माण किया हुभा मनावर वा चमन पैदा करता है ।४. मल-मूत्रका धेग व प्यासको रोकनेवाले व सम्वस्थ बिसवावे व्यक्तिको ससममय भोजन नहीं करना चाहिये क्योंकि इससे अनेक रोग उत्पन्न होजाते हैं; मतः शौचादिसे निवृत्त होकर सचित्तसे भोजन करे ॥४॥ भोजन करके तत्काल म्यायाम मषवा मैथुन करना चाचिजनक है I जीवन के शुल्से सेवन किया जानसे प्रकृति के अनुकूल हुमा विष भी सेवन करने पर पथ्य माना गया है ॥५॥ मनुष्याहों पूर्वकालीन अभ्यास न होनेपर भी पध्य-हितकारक-वस्तु का सेवन करना चाहिये, परन्तु पूर्वका अभ्यासी होने पर भी अपथ्य वस्तु का सेवन नहीं करना चाहिये || बापान ममुम्ब ऐसी पमझकर कि मुझे सभी वस्तुए' पथ्य हैं, विष का कदापि सेवन न करे | क्योंकि विपकी शोधनादि विपिको जाननेवाला सुशिक्षित मनुष्य भी विषयसे मर ही जाता है इसलिये कदापि विषमण न करे ॥४॥ ___ मनुष्य को अपने यहां गाये हुए अतिथियों और नौकरों के लिये राहार रेस मोमब भाना नाहिये सुख-माप्तिका उपाय, इन्द्रियोंको शकिहीम करने वाला कार्य, पाजी हवामें घूमना न समर्थन, सदा सेवन-योग्य वस्तु, बैठने के विषय में, शोकसे हानि, शरीर-गृहकी शोमा, अविश्वसनीय मचि, ईश्वरस्वरूप बरसकी नाममाता देवान् गुरून धर्म चोपचान्न व्याालमतिः स्यात् ॥६॥ व्यापथमनोनिरोपो मन्दयति सर्वाण्यपीन्द्रियाणि ॥७॥ स्वच्छन्दधिः पुनाया परम रसायनम् ॥८il पाकासमी
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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