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________________ दिवसानुष्ठान समुरेश Narmera AR..... ..Annaire... पुत्र-आदि इन सात प्रकारके राज्याधिकारियो मेंसे सबसे पहिले राजपत्रको और उसके न रहने पर भाई-श्रादिको यथाक्रमसे राजा बनाना चाहिये ॥८॥ शुक्र' विद्वानका भी राजाके बाद रायके उत्तराधिकारी बनाने के विषय में यही मत है ॥१॥ जो पुरुष पूर्णमें पाप कर चुका हो, वर्तमानमें कर रहा हो और भविष्य में करेगा, उसके निम्नप्रकारके लक्षणों को देखकर भ्यायाधीशों को उसके पापी (अपराधी) होनेके विषयमें पहिचान करनी चाहिये। १-जिसका चेहरा उदास (म्लान) और काला दिखाई पड़ता हो, २-जिसके मुख से स्पष्ट वचन न निकलते हो-न्यायालय में प्रश्न पूछे जाने पर जो उत्तर देनेमें असमर्धा हो, ३-जिसे लोगोंके समक्ष पसीमा पाता हो, ४-आधार-मार भाई जेधा हो, .... जो अत्यन्त कांप रहा हो ६-जो लड़खहरते पैरों से चलता हो, ७--ओवसरोंके मखोकी भोर बारबार देखता हो -जो अत्यन्त जल्दबाज हो और है जो स्थिरतासे कार्य न करता हो या जो स्थिर भावसे जमीन पर या एक स्थान पर न बैठता हो ।।६॥ शक विधान का भी अपराधी-पुरुषोंकी पहिचानके विषय में यही मत है ॥१॥ इति राजरक्षा समुश। २५ दिवसानुष्ठान-समुद्देश। नित्यकर्तब्य, सुखपूर्वक निद्रासे लाभ, सूर्योदय व सूर्यास्त की बेला में शयनसे हानि-दिधाम महर्स उपयायेति कर्तध्यतायां समाधिमुपेयात् ॥१॥ सुखनिद्राप्रसन्ने हि मनसि प्रतिफलन्ति यथार्थवाहिका बुद्धयः ॥२॥ उदयास्तमनशायिषु धर्मकालातिक्रमः ॥३॥ पारमवक्त्रमाज्ये दर्षणे पा निरीक्षेत ॥४॥ न प्रातवर्षपर विकलाङ्ग या पश्येत् ॥५॥ सन्ध्यासुधोतमुखं जप्त्वा देवतोऽनुगृहातिः ॥६॥ नित्यमदन्तधावनस्य नास्ति मुखशुद्धिः ॥७॥न कार्यध्यासङ्गेन शारीर कर्मोपहन्यात् ॥॥ न खलु पुगैरपि तरङ्गविगमात् सागर स्नान 18|| वेग-व्यापाम-स्वाप-स्नान-भोजन स्वच्छन्दति कालान्नोपहन्यात् ॥१०॥ भर्ष-मनुष्यको नाममुहूर्त में उठकर स्थिर वित्तसे इस समुद्देश में कहे आनेवाले सत्यकर्तव्यों का पालन करना चाहिये ॥१॥ जिस मनुष्यका वित्त सुखपूर्षक गाद निद्रा लेनेसे स्वस्थ रहता है, उसमें ताएक--सुनः सोदरसापरमपितृप्या गोत्रिणस्ता । बोहित्रागमतुच योग्या पवे राज्ञो यामम् ॥१॥ . सवा च शुक-मायाति स्वखितः पादै भाया पापकर्मवत् । प्रस्पेदनेन संयुक्तो भयोरष्टि: सुम्ममाः ॥ ६ मु.मू. प्रति में इसके पश्चात् 'रजस्वला ऐसा अधिक पाठ है, जिसका अर्थ यह कि मनुष्य प्रात:काल अस्वस्खा स्त्री को भी न देखें। ___A उक्त पार म. म. प्रतिसे सकलन किया गया है। .
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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