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________________ २६८ नोतिवाक्यामृत होकर नेस्तनाबूद करना। ४-शत्रु के सैन्य-समूहको कुचलकर नष्ट करना । नदीके जलमें एकसाथ कतार. बार खड़ेहो कर पुल बांधना । ६-केवल वचनालाप-चोलना छोड़कर अपने स्वामोके लिये समो प्रकारके भानन्द उत्पन्न करना ॥६॥ भागुरि' विद्वान्ने भी हाथियों के उक्त गुण निरूपण किये हैं ।।। घोड़ोंकी सेना, उसका माहात्म्य व जास्यश्वका माहात्म्यअश्ववले सैन्यस्य जंगम प्रकारः ॥७॥ अश्वबलप्रधानस्य हि रानः कदनकन्दुकक्रीड़ा: प्रसीदन्ति श्रियः, भवन्ति दूरस्था अपि शत्रवः करस्थाः । भापत्सु सर्वमनोरय-सिदिस्तुरंने एव, सरणमपसरणमवस्कन्दः परानीकभेदनं च तुरामसाध्यमेतत् ।। आत्यालो विजिगीषुः शत्रोर्भवति तत्तस्य गमनं नारातिददाति ॥६॥ तजिंका, (स्व) स्थलाणा करोखरा माजिगाणा केकाणा पुष्टाहारा गम्हारा सादयारा सिन्धुपारा जात्याश्वानां नवोत्पचिस्थानानि ॥१॥ मर्य-घोड़ोंकी सेना चतुरङ्ग सेनाका चलता फिरता भेद है, क्योंकि वे भवन्त अपलक वेगसे गमन करने वाले होते हैं। नारद विद्वानले भी आश्व सैन्यके विषयमें इसी प्रकार कहा है॥१॥ जिस राजाके पास अश्व-सेना प्रधानतासे विद्यमान है, उस पर युद्ध रूपी गदसे कीड़ा करने वाली बश्मी-विजयश्री प्रसन्न होती है जिसके फलस्वरूप उसे प्रचुर सम्पत्ति मिलती है। और दूरवीं शत्रु लोग भी निकटवर्ती हो जाते हैं। इसके द्वारा विजिरोषु आपत्तिकालमें अभिलषित पदार्थ प्राप्त करता है। शत्र। भों के सामने जाना और मौका पाकर वहांसे भाग जाना, छजसे उन पर हमला करना व शत्र सेनाको छिन्न-भिम कर देना, ये कार्य अश्व-सेना द्वाराही सिद्ध होते हैं रथादिसे नहीं। शुक्र, विद्यानने भी कहा है कि 'राजा लोग अश्व-सैन्य द्वारा देखने वालोंके समय शव ओं पर हमला करने प्रस्थान कर दूरवर्ती शत्रु को मार डालते हैं ॥१॥ जो विजिगीषु जात्यश्व पर आरूढ़ होकर शत्रु पर हमला करता है, इससे उसकी विजय शेती है भौर शत्रु विजयगीषु पर प्रहार नहीं कर सकता ॥ जास-प्रश्वके । उत्पत्ति स्थान-जातियां हैं। सर्जिका, २ बस्थलाणा, ३ करोखरा,४ गाजि. गाणा, ५ केकाणा, ६ पुष्टाहारा, गाम्हारा, सादुयारा व ६ सिन्धुपारा॥१०॥ --- -- तया च भागरिः-सुखपानं सुरवा च शत्रोः पुरविमेदनम् । शनुम्यूहविधातश्च सेतुबन्धो गजैःस्मनः॥1॥ २ तथा नाका-तुरंगमय यच्च तरकारो स्मृहं । सन्मस्व भूमुजा काय तस्मातगवत्तरम् | ३ तथा च शुक्रः-प्रेचतामपि शन्न सो यतो यान्ति तुरंगमैः । भूपाला येन मिमम्ति रानु दोऽनि सस्थितम् ॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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