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________________ -- ___१६-जनपद-समुद्देश देशके नामों- राष्ट्र, देश, विषय, मण्डल, जनपद, वारक व निर्गम शब्दोंकी सार्थक व्याख्यापशुधान्यहिरण्यसंपदा राजते इति राष्ट्रम् ॥१||मा दण्डकोशद्धिं दिशतीति देशः ॥२॥ विविधवस्तुप्रदानेन स्वामिनः सबनि गजान शजिनश्च विषियोति बनातीति विषयः ||३|| सर्वकामधुक्त्वेन नरपतिहृदयं मण्डयति भूषयतीति मण्डलम् ॥॥ जनस्य वर्णाश्रमलक्षणस्य द्रव्योत्पत्तेर्वा पद स्थानमिति जनपदः॥५॥ निजापतेरुत्कप जनकत्वेन शत्र हृदयानि दारयति मिनत्तीति दारकम् ।।६॥ आत्मसमद्ध्या स्वामिनं सबभ्यसनेम्यो निर्गमयतीति निर्गमः ॥७॥ अर्थ-क्योंकि देश गाय भैंस आदि पशु गेहूँ-चांवल प्रभृति अन्न व सुवर्ण-आदि सम्पत्तिसे शोभायमान होता है, इससे इसकी 'राष्ट्र संशा है॥शा भागुरि विद्वान् ने भी देश को पशु, धान्य, तावा लोहा प्रभृति धातु य वर्तनोंसे सुशोभित होने के कारण राष्ट्र' कहा है ॥१॥ यह स्वामी को सैन्य-कोषकी वृद्धि देता है, अतः इसकी 'देश' संशा है ॥२॥ शुक्र विद्वान् ने भी देश शन्दकी यही सार्थक व्याख्या की है ॥१॥ क्योंकि यह नाना प्रकारको सुवर्णधान्यादि वस्तुए प्रदान कर राज-महल में हाथी घोड़े बांधता है, अतः इसे 'विषय' कहते है । शक्र विद्वानने भी विषय' शब्दकी यही ब्याख्या की है ।।१।। क्योंकि यह समस्त मनोरथोंकी पूर्ति द्वारा राजाके हृदयको अलंकृत करता है, इसलिये इसे मरडन कहते हैं ॥४॥ शुक विद्वानके उद्धरणसे भी 'मण्डल' शब्द का यही अर्थ प्रतीत होता है || क्योंकि श षर्ण प्राशक क्षत्रिय,वैश्य व शूद्र) और भाश्रमों (ब्रह्मचारी,गृहस्थ,पानप्रस्थ और यति) में वर्षमान प्रजाजनोंका निवासस्थान अथवा पनका उत्पत्ति-स्थान है अत: इसे 'जनपद' कहते है ।शा । वमा भागुरि :- पशुभिर्विविधांम्प कृप्यमा पृथग्विधः । राजते पेन लोकेऽत्र तबाट मिति कोवे १ मा च एक:-स्वामिनः कोराइविं पसन्यदि तथा पाम् । यस्मादिति नित्य स तस्मादेश उपाहता 10 । प्रथा - शुक्र:- विविधान् वाजिमो गाश्च स्वामिसममि नित्यशः । सिमोतिर यस्माषयः प्रोच्यते सुभैः । ४सया र शुक:-सर्वकामसमृदा च नृपतेहप पतः । मण्डनेन समा युक्त कुरतेऽनेन मण्डलम् ॥१॥ --.- " .....
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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