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________________ मास्य समुद्देश राजा या नैतिक पुरुष अपनी स्त्रियों व धन का रक्षक किसी को न बनाये ||४०|| ! गुरुविन भी स्त्रियों व घन-रक्षा के विषयमें यही कहा है ॥१॥ मंत्री भाषि अधिकारियों की नियुक्ति स्वदेश व परदेश को विचार न करें अस्थायी रूपसे करको चाहिए अधिकारियों की स्थायी नियुक्तिका परिणाम हानिकर होता है अर्थात् षे राजकीय धन-अपहरण द्वारा राज्य-पति कर डालते हैं। परदेशवासी व्यक्ति जिस अधिकारीके कर्त्तम्य में कुशल हो, उसे स पर पर अस्थायी तौर पर नियुक्त कर देना चाहिये ||४०|| - २७७ SAMJAME राजाके राज्यतन्त्र संचालनार्थ निम्नप्रकार पांच करण-- पंचकुल होते हैं । । १ आदायक क्यावक्कों से चुगी टैक्स के जरिये द्रभ्य वसूल कर राज-कोष में जमा करनेवाला कोषाध्य निबंधक-एक उपाय द्वारा प्राप्त इब्ध व माल का हिसाब बही - आदिमें लिखनेवाला । ३ प्रतिबन्धक मी मादिके जालपर या खजाने में जमा होने अली वस्तुओं पर राजकीय मुहर लगाने बाक्षा । ४ नीवीमाइकजकीय इसको राज कोचमें सभा करने वाला (खजानची) । ४ राजाध्यक्ष – एक चारों अधिकारियों की देख-रेख रखनेवाला प्रमान पुरुष १५११ चाम नीमेंसे उपयुक्त खचे करनेके पश्चात् बची हुई और जाँच पड़वाल-पूर्वक खजाने में जमा श्री हुई सम्पति को 'नीवी' कहते हैं ||१२|| राजा तक नीवी प्राहक खजानची से उस बद्दी को जिसमें राजकीय द्रष्य के आय-व्यय का हिसाब लिखा है, बेकरी तरह जांच-पड़ताल करके आय-व्यय को विशुद्ध करे ॥ ५३ ॥ १ १: 4 किसी नीतिकार ने भी राजकीय सम्पत्ति की आय ब्यय शुद्धिके विषय में इसी प्रकार कहा है ॥ १ ॥ जब सम्पत्तिका आप-यव करनेवाले अधिकारियों में आमदनी व खर्च के विषय में विवाद - मानवाला विरोध - चपस्थित होजाय तब राजाको जितेन्द्रिय व राजनीतिज्ञ प्रधान पुरुषों मंत्री यादि से विचार-परामर्श करके उसका निश्चय कर लेना चाहिये। अभिप्राय यह है कि किसो अवसर कारवश राज्य में टेक्से आदि द्वारा होने वाली सम्पत्ति की आय - आमदनी बिलकुल रुक गई हो और मन का व्यय अधिक होरहा हो, ओ कि अवश्य करने योग्य प्रतीत हो जैसे शत्रु कृत हमसेके समय सैनिक शक्ति के बढ़ानेमें अधिक और आवश्यक खर्च । ऐसे अवसर पर यदि अधिकारियों मैं भाव-व्यय संबंधी विवाद उपस्थित होजाये, तो राजाको सदाचारी व राजनीतिज्ञ शिष्ट पुरुषोंका कमीशन बैठाकर छ विश्वका निश्चय करलेना चाहिये । अर्थात् यदि महान् प्रयोजन सिद्ध (विजय) होती हो तो आमदनी अधिक सर्च करने का निश्चय करलेना चाहिये अन्यया नहीं ||१४॥ शुविज्ञान ने भी सम्पचिके नाम-व्यय संबंधी विवाद के विषय में इसी प्रकार कहा है ||१|| विवो वियोग जातिसम्बर 19 इस्तेमद पुस्तकं समवस्थितम् । श्रभम्यच च तत्रस्थो वीवो १॥ विपथ प्रभाते [प्रवे निश्कने वापि ] साधुभ्यो नित्यदा ॥१॥ संशोषित व परिवर्ति ।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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