SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नीतिवाक्यामृत utes .. . गुरु' विद्वान् का उद्धरण भी उक्त यातका इसी प्रकार समर्थन करता है ॥१॥ जिसप्रकार रथ आदि का एक पहिया दूसरे पहियेकी सहायताके बिना नहीं घूम सकता, उमी प्रकार अकेला राजा भी मंत्री आदि सहायकोंके बिना राजकीय कार्य (मन्धि विग्रह प्रभृति) में सफलना प्राप्त नहीं कर सकता ॥ २-३ ॥ एवं जिस प्रकार अग्नि ईन्धन युक्त होनपर भी बाके विना प्रचलित नहीं हो सकसी उसीप्रकार बलिष्ठ व सुयोग्य राजा भी राज्यशासन करने में समर्थ नहीं होसकता ॥ ४॥ बलभदेव विद्वान् के उद्धरणसे भी उक्त बातकी इसी प्रकार पुष्टि होती है ॥ १ ॥ मन्त्री-लक्षण, कर्तव्य, व श्राय-व्ययका दृष्टान्त-- स्नकर्मोत्कर्षापकर्षयोर्दानमानाभ्यां सहोत्पत्तिविपत्नी येषां तऽमात्याः ॥ ५॥ श्रायो ध्यय: स्वाभिरक्षा तन्त्रपोपणं चामात्यानामधिकारः ।। ६ ॥ आयव्ययमुखयामु निकमण्डलुनिंदर्शनम् ॥ ७ ॥ अर्थ:-जो राजा द्वारा दिये हुए, दान-सन्मान प्राप्त कर अपने कर्तव्य पालनमें उत्साह व पालम्य करनेसे क्रमशः राजाके साथ सुखी-दु:खी होते हैं, उन्हें 'अमात्य' कहते हैं।। ४ । शुक्र' विद्वानने भी कहा है कि 'जो राजाके सुख-दुःखमें समता-युक्त-सुखो-दुःखी होते हो, उन्हें राज्य-मान्य 'अमात्य' जानना चाहिये ॥१॥ मन्त्रियोंके निम्न प्रकार चार मुख्य कर्तव्य है । १ आय-सम्पत्तिको उपस करनेवाले उपायों (समुचित टेक्स प्रभृति) का प्रयोग, २ व्यय-स्वामी की आज्ञानुसार मामदनी के अनुकूल प्रजा-मरक्षणार्थ सैनिक विभाग-प्रादि में उचित खर्च, ३ स्वामी रक्षा (राजा व उसके कुटुम्बका संरक्षण), हार्थी-घोड़ा प्रभृति चतुरग सेनाका पालन-पोषण ॥ ६ ॥ शुक्र' विद्वानके उद्धरणका भी यही अभिप्राय है॥१॥ सम्पत्तिकी श्रामदनी घ खर्च करनेमें मुनियोंका कमरहलु स्वान्त सममाना चाहिये । अर्थात् जिम प्रकार मुनिराजका कमण्डलु जल-प्रहण अधिक परिमाणमें व शीघ्रतासे करता है, परन्तु उसका खर्च -- - १ सदा र गुरु-चतुरऽपि नोच से मन्त्रिणा परिवर्जितः । स्वयक मोशः स्यात् किं पुनः पृथिवीपतिः ।।१।। २ तथा च बहसमदेषः-किं करोति समर्थोऽपि राजा मन्त्रिपर्जितः । प्रदीप्तोऽपि यथा वहि: समीस्वविना झवः ॥ या शुक्र:-प्रसादे प्रसादे व येषां च समवास्थितिः । प्रभात्यास्ते हि विजया भूमिपासस्य संमना: ॥ ४ तया च शुक्रः-- भागतिव्ययसंयुक्ता तथा स्वामीरपणम् । तन्त्रस्म पोषणं काय मन्त्रिभिः सर्वदेव हि ॥ --- -.
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy