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________________ स्वामीसमुश mammana.................. .. मनुष्य जिसका सेवक है, दरिद्र व्यक्तिको लघुता व विद्या माहात्म्य पुरुषस्य पुरुषो न दासः किन्तु धनस्य ॥५४॥ को नामधनहीनो न भवेन्ला A५५॥ सर्वधनेषु विद्य व धनं प्रधानमहार्यत्वात् सहानुयायित्वाच्च ॥ ५६ ॥ सरित्समुद्रमिय नीचोपगतापि विद्या दुर्दर्शमपि राजानं संगमयति ॥ १७ ॥ परन्तु भाग्यानां व्यापारः ॥ ५८ ॥सा खलु विधा विदुषां कामधेनुर्यतो भवति समस्त जगत्स्थितिझानम् ॥ ५ ॥ अर्थ-लोकमें मनुष्य केवल हाथ-पाँववाले मनुष्यका सेवक नहीं होता, किन्तु इसके पनका सेवक होता है, क्योंकि जीवन-निर्वाह घनाधीन है ।। ५४ ।।. शुरु विद्वान् ने भी इसीप्रकार कहा है ।। १ ।। म्यास' विद्वान् ने भी महाभारतके भीष्मपर्यमें लिखा है कि 'महारमा भीष्मपितामहने युधिचिरसे कहा कि हे महाराज मनुष्य धनका दास है, परन्तु धन किसीफा दास नहीं। भवः मनके कारण ही में कौरवोंके अधीन हुआ हूँ ॥ १ ॥ लोकमें कौनसा दरिद्र मनुष्य लघु-छोटा-नहीं होता १ सभी होते हैं ॥५४॥ महाकवि कालिदास ने भी मेघदुत काव्यमें कहा है कि 'लोकमें सभी मनुष्य निर्धनता- दरिद्रतासे छोटे भौर पनसे बड़े होते हैं ।। १ ॥ सुषर्ण-मादि समस्त पनों में विद्याही प्रधान धन है, क्योंकि वह चोरों द्वारा पुराई नहीं जाती व जन्मान्तरमें भी जीवात्माके साथ जाती है ।। ५६ ॥ नारद विद्या ने भी इसीप्रकार विद्याकी महत्ता निर्देश की है॥१॥ जिसप्रकार नीचे मार्गसे बहनेवाली नदी अपने प्रवाह-वर्वी पदार्थो-तृणादिकोंको दरवर्ती समुरके A. 'पराधीने मास्ति शर्मसम्पत्तिः इसप्रकारका विशेष (११२) सके पश्चातू पूर्व पुस्तकों - मान है, जिसका अर्थ यह है कि पराधीन पुल्योको पुलपति प्राप्त नहीं होती। तपास गुरुः-पुमान सामान्यगावोऽपि न चासम्म स कर्मकृत् । वा बोलि पुनः कर्म बासरचला . रथा पम्पासः-अर्थस्थ पुरुषो पासो दासस्स्पों मस्यचित् । इति सत्य महाराज सोमपन . पाच महाकविः पालिदासः-रिक सर्पो भवति हिजपुः पूर्वता गौरवा . तथा च मारदः-बनानम्मेव सपा विधापनमनुत्तमम् । रिस्ते यम्म केनापि प्रस्थितेन सम प्रजेत् ।।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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