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________________ स्वामीसमुदश ummaNIH... rau...... Mutimoniemaa............m 'afeMINowMIHIRAIN.aur राजा मोकेर परअपना राज-द्वार खुला रखे, जिससे प्रजा उसका दर्शन सुलभतासे कर सका। गर्ग किम ने सो बाहादेवि वा एक मौका छोड़कर बाकी समयोंमें राजा अपना द्वार सदा सुरक्षित रखेप अवसर आनेपर भी प्रजाको अपना दर्शन न देवे निश्चयसे प्रजाको दर्शन न देने पाणे राजा का कार्य अधिकारी वर्ग स्वार्थ-वश बिगाड़ देते हैं और शत्रुलोग भी उससे बगावत करने तत्पर होजाते हैं, अतः प्रजाको राजकीय दर्शन सरलतासे होना चाहिए ।३४॥ राजपुत्र और गर्ग' विद्वान ने भी क्रमशः कहा है कि जो राजा अपने द्वार पर भाप हुए विद्वान् भनाध्य, दीन (गरीब) साधु व पीड़ित पुरुष की उपेक्षा करता है उसे अरमी छोड़ देती है ॥॥ स्त्रियों में पासक्त रहने वाले राजा का कार्य मंत्रियों द्वारा विगाड़ दिया जाता है और शत्र भी उससे युद्ध करने सत्पर होजाते हैं ॥२॥ जिस प्रकार धनिकों की बीमारी बगना छोड़कर वैचों की जीविका का कोई दूसरा समाप नही उसो प्रकार राजाको व्यसनों में फंसाने के सिवाय, मंत्री आदि अधिकारियों की जीविका का भी कोई दूसरा उपाय नहीं है सारांश यह है कि अशिष्ट वैधोंकी तरह अशिष्ट अधिकारी वर्गकी पूणित सारा लोक में देसी अनुचित प्रवृत्ति देखी जाती है, अतः राजा को उनसे सावधान रहना चाहिये, जिससे वे उसे बसमों में फंसकर स्वयं रिश्वतखोर आदि न होने पावें ॥३५॥ रैप' विद्वान्ने कहा है कि जिस प्रकार धनिकों की बीमारी के इलाज करने से क्यों को विशेष सम्पचि प्राप्त होती है उसीप्रकार स्वामीको व्यसनमें कंसा देनेसे नौकरोंको सम्पत्ति मिलती है ॥ राज-कर्तव्य (रिश्वतखोरोंसे प्रजा-रक्षा) और रिश्वतसे मजा व राजकीय हानिः कार्यार्थिनः पुरुषान् लम्चलञ्चानिशाचराणां भूतबलीम कुर्यात् ॥२६॥ लन्चलुच्चा हि सर्वपातकानामागमनद्वारम् ॥३७॥ ६ मार गर्ग:-मुवावसरगुजारद । प्रस्थापि परिकले मोधना ) मा राजपुत्रः- शानिनं धमिनं धोनं योगिनं पासिंधु त । द्वारस्थं च सपोत स जिचा समुच्ये Hen काम गर्नः-सीसमासकरितो बहितिपः सप्रजायते । बाम सर्वहारा सविनीयोऽसमि रैम्पः पराण पणा म्याधिषेचाना निधिकत्तमः । नियोगिनां क्या पा स्वामित्वसन सम्मका 'अर्विनः पुरुषाम् सम्या खुन्धान्ति, सम्स मूवार्षिक दि इस प्रकारका पाठान्तर मूवियों अमेव का नहीं।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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