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________________ २४० नीतिवाक्यामृत प्राप्तपुरुषोपदेश आगमः ॥ १४ ॥ पथानुभूतानुमितश्रुतार्थाविसंवादिवचनः पुमानाप्तः ॥१५॥ मा नाकामयनुगास्था, गत्र नास्ति सद्य क्तिः ॥ १६ ॥ वक्तुगुणगौरवाचनगौरवम् ॥ १७ ॥ कि मितपचेषु धनेन चाण्डालसरसि वा जलेन यत्र सतामनुपभोगः ॥ १८ ॥ लोको मतानुपतिको यतः सदुपदेशिनीमपि कुहिनी तथा न प्रमाणयति यथा गोध्नमपि प्रामणम् ॥ १६ ॥ अर्थ-प्राप्त(वीतराग, सर्वश व हितोपदेशी तीर्थकर प्रभ अथवा आगमानुकूल सत्यवक्ता शिष्टपुरुष) के उपदेशको 'भागम' कहते हैं ॥ १४॥ जो अनुभव, अनुमान एवं प्रागम प्रमाण द्वारा निश्चित किये हुए पदार्थीको तदनुकूल-विरोध शून्य-वचनों द्वारा निरूपण करता है, उस यथार्थवक्ता तीर्थकर महापुरुषको वा उक्त गुण-सहित प्रामाणिक शिष्ट पुरुषको 'प्राप्त' कहते हैं ।। १५ ॥ हारीत विद्वान् ने भी कहा है कि 'जो पुरुष सत्यवक्ता, लोक-मान्य, आगमानुकूल पदार्योका निरूपण करनेवाला और मिथ्यावादी नहीं है, उसे 'प्राप्त' कहते हैं ।।१।। पक्ता द्वारा कही हुई जिस वाणीमें प्रशस्त युक्ति-कहे हुए पदार्थको समर्थन करनेवाले पचन व शोभन अभिप्राय नहीं है, वह कही हुई भी बिना कही हुई के समान है।।१६।। ___ हारीत विद्वान् ने कहा है कि 'वक्ताकी जो वाशी युक्ति-शून्य और श्रोतामोंके अल्प या अधिक प्रयोजनको समर्थन करनेवाली नहीं है, उसे जंगल में रोनेके समान निरर्थक जाननी चाहिये ॥१॥ बताके गुणों-विद्वत्ता व नैतिक प्रवृत्ति-श्रादि-में महत्ता होनेसे उसके कहे हुए वचनों में महत्ताप्रामाणिकता व मान्यता होती है ।। १७ ॥ रेभ्य विद्वान् ने भी कहा है कि 'यदि वक्ता गुणवान होता है तो उसके वचन मी गुण युक्त होते हैं और गो सभाके मध्य निरर्थक प्रलाप करता है असकी हँसी होती है।।१॥" -... ....- ...-- -- -- ... तथा नदारोत:-यः पुमान् सत्यवादी स्यात्तथासोकस्य सम्मतः । भूतार्थो पस्य नो पाक्यमन्यथाः स उच्यते 1. २ तथा र हारोतः-सा धाम्युक्तिपरित्यक्ता कार्यस्यापाधिकस्य वा । सा पोशापि वृथा शेया वरण्यदितं यथा ॥३॥ ३ तथा नरभ्य - Ep गणपंयुको नका वाय च यद्गुणम् । मुमो वा हास्यतां याति सभामध्ये प्रल्पितम् । -- - - -
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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