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________________ पुरोहितममुद्देश . ........ n माता-पितासे प्रतिकूल पुत्रको कड़ी आलोचना और पुत्रकर्त्तव्य क्रमशः स किमभिजातो मातरि यः पुरुषः शूरो वा पितरि ।।२१॥ अननुजाता न क्वचिद ब्रजेत् ॥२२॥ मार्गमचलं जलाशयं च नकोऽवगाहयेत् A ॥२३॥ ____ अच-जो मनुष्य माता-पिताके साथ वैर-विरोध करके अपनी वीरता प्रकट करता है, क्या वर कुलीन कहा जामकता है ? नहीं कहा जासकता । अभिप्राय यह है कि प्रत्येक मनुष्य को अपनी कलीनता प्रगट करने के लिए माता पिताकी भक्ति करनी चाहिये ॥२॥ मनु' विद्वान ने भी कहा है कि 'सच्चा पुत्र वही है, जो माता-पितासे किसी प्रकारकाप नही फरता, परन्तु जो उनम द्वेष करता है, उसे दूमरेका वीयें समझना चाहिये ॥१॥ पनी माता पिताको माझाके बिना कहीं न जाना चाहिये ॥२२॥ यमिर विद्वान ने भी कहा है कि 'जो पुत्र माता पिताकी आमाके बिना सूक्ष्म कार्य भी करता है, उस कुलोन नहीं समझना चाहिये ।।१।। पत्रका माता-पिता व माथियोंके विना-अकेला-किसो मार्गमें नहीं जाना चाहिये, व पहाड़. पर नहीं चढ़ना चाहिये और न कुत्रा-बावड़ी आदि जलाशयमें प्रविष्ट होना चाहिये ॥२३॥ . गुर विद्वान ने भी कहा है कि 'माता पितामे रहित-अकेले-पुत्रको वाबदो-कूप-मादि जलाशयम, नश्रा मार्ग और पहाड़में प्रवेश नहीं करना चाहिये ॥१॥ गुरु, गुरु पत्नी, गुरु-पुत्र व महपाठी के प्रति छात्र-कर्तव्य क्रमशः पितरमिव गुरुभपचरत् ॥२४॥ गुरुपत्नी जननीमिय पश्येत् ।।२५|| गुरुमिव गुरुपुत्रं पश्येत् ॥२६॥ सब्रह्मचारिणि बान्धव इव स्निात।२७॥ 'अवगाहेन' इमपुकार का पार मु. व इ. लि. मू. प्रतियों में उपलब्ध है परम्नु अर्ध-भेद कुछ नहीं है। , तथा च मनुः -- न पुत्र: पिनरं वेष्टि मातरं न फर्थचन ! यत्नयापसंयुक्तस्तं विन्यादन्यरेतसं ॥१॥ २ नया प वशिष्टः--पितृमानुपमादेशमगृहोला कति यः । मुसूक्ष्माण्यपि कृयानि म कुलीनो भवेन्न हि ॥३॥ ३ क्या न गुम:-पीकपादिकं पाच मागं वा यदि वायले । नैकोऽवगाहयन् पुत्रः पितृमातृविनिंगः ॥७॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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