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________________ नीतिवाक्यामृत जिसप्रकार अपनी इच्छानुकूल पसिको चुननेवाली कन्याए' दूसरोंको जाने पर (पिताद्वारा उनकी इच्छा-विरुद्ध दूसरोंके साथ विवाही जाने पर ) पिताको तिरस्कृत करती हैं या उसकी हँसी कराती हैं, उसीप्रकार श्रोताओंकी इष्ट प्रयोजन-सिद्धि करनेवाली बताकी वाणी भी जब निरर्थक कही जाती है, तब वह वाको तिरस्कृत करती है अथवा उसकी हँसी-मजाक कराती हैं। निष्कर्ष यह है कि नैतिक बक्ताको श्रोताओंके इष्ट प्रयोजन-साधक, सात्विक और मधुर वचन बोलना चाहिये एवं उसे निरर्थक वचन कहना छोड़ देना चाहिये, जिससे उसका तिरस्कार और हंसी-मजाक न होने पावे । श्रथवा जिसप्रकार विवाहयोग्य कन्याएं अपने पतिकी इष्ट प्रयोजन-सिद्धि करनेवाली होती हैं, उसीप्रकार वक्ताको वाणी भी श्रोताकोंकी इष्टप्रयोजन-सिद्धि करनेवाली होती है परन्तु जब बता नीति विरुद्ध और निरर्थक वाणी बोलता है, तब उससे उसका तिरस्कार या हँसी-मजाक किया जाता है || १५८६ ।। २०४ ****----- वर्ग' विद्वान् ने भी कहा है 'जो मनुष्य निरर्थक वाणी बोलता है उसकी हँसी होती है । जिसप्रकार स्वयं पतिको चुननेवाली कन्याएं अपने पिताका जो कि उन्हें दूसरोंके साथ विवाहना चाहता है, आदर नहीं करती ॥१॥ मूर्ख वा जिद्दीको उपदेश देनेसे हानि क्रमशः - तत्र युक्तमप्युक्तमयुक्तसमं यो न विशेषज्ञः A ॥१४६॥ स खलु पिशाचकीB वातकी वा यः पर े ऽनर्थिनि वाचमुद्दीरयति ॥ १६० ॥ अर्थ- जो मनुष्य वक्ता कहे हुए वचनोंपर विशेष विचार ( इसने अमुक बात मेरे हितकी कही है-इत्यादि) नहीं करता - जो सूखे है, उसके सामने उचित बात कहना भी अनुचितके समान है, क्योंकि उसका कोई फल नहीं होता । सारांश यह है कि मूर्खको हितोपदेश देना व्यर्थ है ॥ १५६ ॥ वर्ग" विद्वान् ने भी कहा है कि 'मूर्खको उपदेश देना जंगलमें रोनेके समान म्यर्थे है, क्योंकि वह उससे वि अहितका विम्बार नहीं करता; इसलिये बुद्धिमान् पुरुषको उससे बातचीत नहीं करनी चाहिए ||१|| जो इक्का उस भोतासे बातचीत करता है जो कि उसकी बातको सुनना नहीं चाहता, उसकी लोग इसप्रकार शिदा करते हैं कि इस बक्ताको पिशाचने जकड़ लिया है या इसे बातोल्वण सन्निपान रोग होगया है, जिससे कि यह निरर्थक प्रशांप कर रहा है ।। १६० ।। १ वा वर्ग:सामा कुर्यात् स पुमान् दास्तां जजेत् । पतिंबरा पिता पदम्यस्थार्थे वृथात् ] ||१|| संशो० A 'वत्र शुक्रमप्युक्तममुद्रसमं वो न विशेष:' इस प्रकारका पाठान्तर मु० ० शि० मू० प्रतियोंमें विद्यमान में, जिसका अर्थ यह है कि मूर्खके समय योग्य वचन कहना भी नहीं कहने के समान है । B सु. ६०० मू० प्रतियोंमें 'पावकी' ऐसा पाठान्तर है जिसका अर्थ 'पापी' है। २ तथा च वर्ग:- अरमरुदित तस्याद् यम्मूर्खस्योपदिश्यते । हिवाहिय न जानाति जल्पित म कदाचन ॥ ३४
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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